ख्वाबो का मुसाफ़िरजिंदगी तेरी अदालत में हाज़िर,माफ कर या दे सज़ा, हाथ मे तेरेमेरा मुंसिफ है तू आखिर।ये कैसा है तारीखों का सिलसिला,सज़ा ए मौत दे या कर रिहा।इतना ना सता के बन जाऊं काफ़िरगुनाह बस इतना है मेरामैं हूं, ख्वाबो का मुसाफ़िर। - अनिल
ख्वाबो का मुसाफ़िरजिंदगी तेरी अदालत में हाज़िर,माफ कर या दे सज़ा, हाथ मे तेरेमेरा मुंसिफ है तू आखिर।ये कैसा है तारीखों का सिलसिला,सज़ा ए मौत दे या कर रिहा।इतना ना सता के बन जाऊं काफ़िरगुनाह बस इतना है मेरामैं हूं, ख्वाबो का मुसाफ़िर।
- अनिल