Anil M. Sahu 'मौन मानव'   (मौन मानव)
9 Followers · 11 Following

मौन, मनन और मानस
तीनों है तो सब कुछ मुमकिन है।

Insta id: maun manav
Joined 12 July 2022


मौन, मनन और मानस
तीनों है तो सब कुछ मुमकिन है।

Insta id: maun manav
Joined 12 July 2022



आप पैदा हुए ये किसको याद रहा...
आपके स्कूल का पहला दिन किसको याद
आपके काॅलेज के कारनामें आप ही दोस्तों को याद दिलाते हो
लेकिन आपकी जवानी में उम्र और बेरोजगारी में औकात
ये ही दुनिया बताती है...
इन बातों को सिर्फ आप याद रखते हो,दुनिया नहीं...
अपने उसूल बना कर;
अपने कायदे तय कर;
अपनी असीम सीमा निर्धारित कर के
खुद से जीयो अपना जीवन...
जमाने की बला से मर भी जाओ
कौन याद रखेगा बताओ?
लाठी से हांके जाने वाला जानवर नहीं
इंसान बनो, बेशुमार इंसानियत वाला...
शेर भी सर्कस वाला नहीं, जंगल वाला...

-




खुशियों को...
गमों को...
तकलीफ-मुसीबत-दर्द को!
बशर्ते कोई तोङे नहीं मित्रता के उस मर्म को...
पाले नहीं मुझ से जोङ किसी फर्जी भ्रम को...
आज के खोखले तंत्र से तोले नहीं मेरे अपनेपन को..

-



सब कुछ तय होता है !!
किसका साथ किस मोड़ तक रहेगा...
किसका प्यार किस सीमा तक मिलेगा...
किसके रंग कब फिके पङेंगें...
कब कौन कीङे करेगा...
किस वक्त कोई कितना गिरेगा...

-



छोटी-मोटी बात पे 'देण' ले लेते हैं...
याद करो वे दिन,जब आप देण में थे...
तब आपके अपने मजे में थे!
अब वे देण में हैं क्योंकि आप मजे में
मुझे पता है आप को दूसरों को देण में देखकर तकलीफ होती हैं,
कम से कम उनको देखकर मजे में तो नहीं रह सकते आप...
लेकिन भूलो मत, चौथी लेण पढ़ो...
आप मजे में हो इसलिए मजे में रहो!

देण= Tension
लेण = line

-



इंसान मूलतः स्वार्थी होता है!
उसकी परवरिश के दौरान बहुत-सी बातें उसकी आदत में डाली जाती है, शिक्षण के दौरान आदतें परिष्कृत की जाती है, समाज में रहते हुए उन्हीं आदतों से वो व्यक्तित्व के रूप निखार लेता है,
इस दरमियान कोई व्यक्ति विशेष सामान्य सामाजिक रिश्तों से उपर एक पायदान पर होता है... उस इंसान को कभी समक्ष तो कभी अग्रगामी का दर्जा दे बैठा होता है ... लेकिन वक्त के साथ तय होता है दर्जा देने वाले का स्थान कि तुम अनुगामी हो, समाज से ही कोई एक व्यक्ति हो, परिधि से परे कोई प्राणी विशेष भी नहीं बस प्राणी-मात्र हो...

-



आप की बात पर आने वाली प्रतिक्रिया क्या बताती है?

1.आप की विशिष्टता अत:आप होते हैं आम जन में से प्रियजन...
2.आपका सामान्यीकरण अर्थात्‌ आप होते हैं आम जन में से कोई सज्जन...

निष्कर्ष: सच कङवा होता है! उसे स्वीकार करें और अपनी मनमानी विशिष्टता से सामान्य सज्जन होने की ओर प्रस्थान करें...

-





हम भरे रहते हैं असंख्य विचारों की बाढ़ से...
लोगों के तानों से...
अतीत के बिगड़े लम्हों से...
अपने-परायों की बेकार हरकतों से...
और भी न जाने किस-किस चीज से...
सोचो जरा!
आज अगर आप विचारों की बाढ़ को नदी के प्रवाह में;
लोगों के तानों को सफलता की सीढ़ी में;
अतीत के बिगड़े लम्हों को सीख में;
अपने-परायों की बेकार हरकतों को दया की पात्रता में
बदल डालो तो दुःख, तनाव के बादलों की ओठ से
सुख का सूर्योदय होने में समय नहीं लगता है...

-



हर उम्र में आने वाला हर एक व्यक्ति
इतना ही तो पाक-साफ लगता है;
और उतना ही घनिष्ठ बनता जाता है...
जैसे-जैसे वक्त बीतता है;
वैसे-वैसे नापाक हरकतें सामने आने लगती हैं...
घनिष्ठता नीचता में बदलने लगती है...
ऐसे में हम दुश्मनी पाल बैठते है...
और अपना समय व ऊर्जा व्यर्थ करते है...
जबकि हमें क्या करना चाहिए-
"जिक्र क्या जुबां पे नाम नहीं
इससे बङा कोई इंतकाम नहीं"

-





जब चारों तरफ से घिर जाओ,
उस वक्त मौन हो जाओ!
बाहरी शोर को किनारे करो,
मनन शुरु करो...
राह निकल ही जाती है क्योंकि
मनन मात्र मानव मोक्ष!

-



समाज का दर्पण

किसी को भी तब तक कोई शिकायत नहीं होती,
जब तक कि आप किसी सही रास्ते पर नहीं निकल जाते...
चाय भी गर्म है तब तक बहुत बढ़िया लगती है,
लेकिन जब उसको बार-बार गर्म करोगे
तो वो भी कड़वी लगने लग जाती है...
हर इंसान की सहनशक्ति की एक सीमा निर्धारित होती है
और कभी-कभी उस सीमा से भी परे सहन कर जाता है
क्योंकि संस्कारों का दायरा उस सीमा से भी बड़ा हो जाता है
लेकिन वहीं संस्कार आप को सीमित भी करने लग जाते हैं
तब द्वंद्व की स्थिति उत्पन्न होती है,
संस्कारों पर सवाल खड़े होते हैं,
नवीन बात पर बवाल शुरू होते हैं
नवाचारकर्ता को कांधे मिल जाएंगे
लेकिन किसी का साथ नहीं...

-


Fetching Anil M. Sahu 'मौन मानव' Quotes