अब तो दिन आकर सीधा रात पर ही रुकता है,
मुझे याद है पहले एक शाम भी हुआ करती थी ।-
मुझे उदास कर गए हो
खुश रहो,
मेरे मिजाज पर गए हो
खुश रहो,
मेरे लिए नहीं रुक सके तो क्या हुआ
जहां कहीं भी ठहर गए हो
खुश रहो,
उदास हो किसी की बेवफाई पर
वफा कहीं तो कर गए हो
खुश रहो,
किसी की ज़िंदगी बनो की बंदगी
मेरे लिए तो मर गए हो
खुश रहो !!-
क़रीब आते हुए इतने पास हो गए थे,
के फ़िर बिछड़ते हुए हम उदास हो गए थे !
हवस को इश्क़ में शामिल नहीं किया हमने
वो जब भी जिस्म बना हम लिबास हो गए थे !!
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मुसाफ़िर कल भी था
मुसाफ़िर आज भी हूँ।
कल अपनों की तलाश में था,
आज अपनी तलाश में हूँ ।-
सब तरह की दीवानगी से वाकिफ हुए हैं हम ,
पर मां जैसा चाहने वाला जमाने भर में ना है !
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तुम रहो अपनी समझदारी के महलों में ,
मुझे मेरे हिस्से का पागलपन जी लेने दो !-
कैसे हार जाऊ तकलीफों के आगे,
मेरी तरक्की की आस में मेरी माँ बैठी है।
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कुछ तो है जो बदल गया
जिन्दगी में मेरी ,
अब आइने में चेहरा मेरा
हँसता हुआ नज़र नहीं आता !
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