लघु कथा: बकरे का नृत्य
जंगल में अपनी क्रूरता से दहशत और अराजकता फैला हुए बेरहम लकड़बग्घों के बीच जा कर एक बकरा इसलिए नृत्य करने लगा कि ऐसा करने से लकड़बग्घेँ उसकी जान बख़्श देंगे। परन्तु अफ़सोस वही हुआ जो अब तक होते आया... 😥😥😥अनिल कुमार 'अलीन'-
नमस्कार दोस्तो🙏🙏🙏!
इस भागदौड़ की जिंदगी म... read more
सुना हूँ धर्म की रक्षा करने से धर्म हमारी रक्षा करता है।
इससे यह सिद्ध होता है कि 4-5 वर्ष की मासूम बच्चियों का बलात्कार और निर्मम हत्या तथा कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध इसलिए होते हैँ क्योंकि मासूम बच्चियाँ और कन्या भ्रूण धर्म की रक्षा नहीं कर सकते। इसलिए धर्म भी उनकी रक्षा नहीं करता।
---स्वामी फ़जीहतानन्द-
जिस समाज में स्त्री को जलाये जाने की घटना को उत्सव के रूप में मनाया जाता हो उस समाज में स्त्री जाति का शोषित, पीड़ित और बलत्कृत होना स्वाभाविक है।
---अनिल कुमार 'अलीन'-
लोकतान्त्रिक नायकों को छोड़कर
राजतान्त्रिक व्यक्तियों को
नायक/आदर्श बनाया जाना
लोकतंत्र और उसके मूल्यों
के प्रति बहुत बड़ी
साजिश है।
---अनिल कुमार 'अलीन'-
मुझे ज़िद है खुद से आगे निकलने की। इस ज़िद में बहुत कुछ पीछे छूटा है और आगे भी बहुत कुछ छूटेगा? अच्छा यह है कि मैं खुद से नित्य व सतत आगे निकल रहा हूँ, बहुत आगे निकल रहा हूँ। यह अलग बात है कि ज़माने से पिछड़ रहा हूँ, बहुत पिछड़ रहा हूँ... अनिल कुमार 'अलीन'
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मैं किसी समाज/देश में बदलाव को बदलाव के रूप में नहीं स्वीकारता ज़ब तक कि उसमे सामाजिक समानता और स्वतंत्रता निहित ना हो। जो स्त्री, पिछड़े, अल्पसंख्यक या अन्य के उत्पीड़न और शोषण से मुक्त ना हो, जो जुल्म और अपराध से मुक्त ना हो। मैं किसी अपराधी को सज़ा देने को बदलाव के रूप में भी नहीं स्वीकारता। मैं उस बदलाव का पक्षधर हूँ जो जुल्म, शोषण, उत्पीड़न और अपराध के सारे कारणों को नष्ट कर सामाजिक समानता और स्वतंत्रता स्थापित कर सके क्योंकि किसी भी सभ्य समाज के लिए सामाजिक न्याय काफी नहीं है।---अनिल कुमार 'अलीन'
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सबसे ख़तरनाक होता है,
कृपालु का नृशंस हो जाना।
सबसे ख़तरनाक होता है,
जिंदो का लाश हो जाना।
सबसे ख़तरनाक होता है,
रामराज में रावण हो जाना।
सबसे ख़तरनाक होता है,
मनुष्य का भीड़ हो जाना।
सबसे ख़तरनाक होता है,
संन्यासी का सियासी हो जाना।
---अनिल कुमार 'अलीन'
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धर्म ऐसा लॉलीपॉप पॉप है जिसे चूसने वाली जीभ लहूँलुहान हुई है। वो भी यह आज या कल की बात नहीं बल्कि सदियों से लेकर आज तक यही होते आया है। उस पर कमाल यह है कि चूसने वाले के ज़ुबान से आह नहीं बल्कि वाह निकला है।---स्वामी फ़जीहतानन्द
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धार्मिक ग़ुलामी बहुत गहरी होती है। इतनी कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आज़ादी मिलने के बाद भी जल्दी ख़त्म नहीं होती।---अनिल कुमार 'अलीन'
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स्वार्थ, सत्ता और वर्चस्व के लिए जी रहा व्यक्ति, परिवार अथवा समाज चाटुकार और झूठा तो हो सकता है परन्तु खुद्दार और सच्चा नहीं हो सकता।
---अनिल कुमार 'अलीन'-