Anil Krishna   (Anil Krishna)
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Joined 13 December 2021


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Joined 13 December 2021
11 HOURS AGO

हम एक रहें हम नेक रहें
हम स्वस्थ रहें हम शिष्ट रहें
हम देश की शान बढायें
हम इस देश की मिट्टी जल
वायु अन्न का कर्ज चुकायें
हम इसे प्रदूषण से बचायें
हम इस धरा में वृक्ष लगायें
अपने सपनों का देश बनाये
जय हिंद जय मां भारती
जय जवान जय किसान
आप सभी बहन बेटियो
और भाईयों,मित्रों को
स्वाधीनता दिवस की शुभकामनायें

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YESTERDAY AT 13:14

रुह से जुड़े एहसासों में समाये रहे बस तू
इन रोशनी घुली सांसों मे सिर्फ तू ही तू

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YESTERDAY AT 13:00

धुंधला सा आईना भी
जब पुराना हो गया

उसका भी मेरे पास
कम आना हो गया



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YESTERDAY AT 9:24

बेशुमार प्रेम लुटा के भी खाली खाली हैं घर और दीवारे
तलाश में अपनेपन की अभी भी सुनसान से गलियारे
बढ़ा करती थी कभी हर शाम रौनके हमारी महफिलों में
आज सूखे हुए पत्ते समेटते है हम ही खुद सफाई करके

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YESTERDAY AT 8:09

हर किसी के दिल में बस कर क्या करोगे
ना मिला विसाल ए यार ना खुदा तब क्या करोगे

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YESTERDAY AT 7:58

जितना पाते कमाते भी नही हैं उससे अधिक खो देते हैं
हम ऐसे नासमझ हैं गल्तियों पर गल्तियां किया करते हैं
जहां भीड़ भाग रही हो हम उसी दौड़ में शामिल होते हैं
दुनियां इक बाजार है वहां से हम क्या क्या खरीदते हैं
सुकून की चाह में कितनी बार हम खुद को भी बेचते हैं
हमारी भावनाओं को कैसे कैसे प्रलोभन दिखाये जाते हैं
हमारी पहुंच से ऊपर के हमें सब्जबाग दिखाये जाते हैं
हमारा शिकार करने को सहूलियत से लोन दिये जाते हैं
इक बार फंसे तो हम जीवन भर नही उससे उभर पाते हैं
गांव से शहरी हुए हम नासमझ प्रदूषित हवाओं में जीते हैं
थोड़ा स्तर सुधारने में हम अपने मूल संस्कार भी खो देते हैं
दर्द बढ़ जाता है उमर बीतने पर शरीर खोखला कर लेते हैं
फिर शहर से वापस गांव जाने की जद्दोजेहत शुरु करते हैं
आधे अधूरे तन मन के साथ अपने परिवार को खो देते हैं


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13 AUG AT 10:19

नदी तालाब झील किनारे
लुभाती हैं मन जो हवायें
दरक जाते हैं घर और दीवारें
खिसकती हैं कमजोर बुनियादें

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13 AUG AT 9:02

मुस्कराहटों के सफर में बच कर ही निकलना
बस दूर से मिलना कोई भरम नहीं रखना
किसी सूरत के पहले उस की सीरत समझना
हवाओं के झोकों में प्रकृति की सुगंध चुनना

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9 AUG AT 10:13

जिनसे दूर हूं आज फिर भी उनके करीब हूं
उनकी दुआओं में शामिल इतना खुशनसीब हूं

दुआयें स्नेहाशीष प्यार खुशियां बांधती कलाई में
भुलाकर सभी बैर आपसी जीवन की परछाई में

देखता हूं चमक रोशनी आती उन वृद्ध आंखो में
बांधकर रेशमी धागा प्रेम उमड़ता उन आंखों मे

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8 AUG AT 10:27

जो दर्द खुद दवा हैं
इस बीमार ए हाल के
उन्हें यादों में सजाये हैं
बैठे इंतजार में उनके

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