क्या अजीब रंग हैं मोहब्बत का,
तू मेरा पलभर का चिडचिडापन नहीं सह सकती,
फिर भी जिंदगीभर तेरे नखरे उठाना चाहता हूँ।।-
एक नयी शुरुआत नए ख्वाबो के संग,
एक नयी मंजिल साथ नयी उमंग।।।
अनजान चेहरे को बुनियाद दोस्ती की मिली,
गम के समंदर में खुशीयों की कश्ती चली,
जिंदगी के नाज़ुक पलो तुने में मुझे सवारा,
दोस्ती का मतलब तुने पुरा किया मेरे यारा,
याद हैं मुझे वो मस्ती वो फिजूल की बातें,
वो देर तक घूमना वो जागती हुई राते,
वो कॉलेज के सीन वो पुणे के दिन,
अब अधूरे से लगते हैं यारा तेरे बीन,
वो होस्टल की हालत बिखरे हुए कपड़े,
बाहर का खाना और बिल के लिए झगड़े,
वो धूंधली तस्वीरे कुछ बाते अधुरी,
मुझे अच्छे से याद हैं रूम की पानीपुरी,
तेरा बडा हाथ है मेरे जिंदगी के जीत में,
मैं तो उलझी पड़ी थी अपने अतीत में,
तूने सिखाया हालातो से लढ़ते रहना,
फिर से खडे होना आगे बढ़ते रहना।।।-
कुछ खास फर्क नहीं पड़ता लोगों के आने जाने से,
फर्क पडता हैं जब वो हमें खास बनाकर चले जाते हैं।।-
सून वक्त लगेगा कोर्ट कचहरी के सुनवाई को,
एक काम कर ख़त्म कर तेरी मेरी लडाई को,
हम दोनों के मसले हम खुद सुलझा सकते हैं,
मेरी बात मान थोड़ा काबूमें रख अपने घाई को,
पता हैं तू साथ होती हैं तो दिल लगा रहता हैं,
मैं कैसे पार करूंगा इस तनहाई के खाई को,
जिंदगी के हर धूप छावमें साथ रही हैं तू मेरे,
तू ही बता मैं कैसे दूर जाने दू मेरे परछाई को,
रात रातभर तेरे जुल्फोमें मैं उलझा रहता था
अब तो तेरी आदत पड गयी हैं मेरे रजाई को।।-
जिंदगी के पटरी पर सांसो की ट्रेन चल ही रही थी के,
तेरे नाम के स्टेशन पर दिल का इंजिन रुक गया।।-
झुक जाते हैं तुम्हारे आगे ए मुहब्बत,
बार बार हमें आजमाना अच्छा नहीं लगता।।-
मला घडवता घडवता झिजले तीचे पाय,
शाळेत नेताना मला थांबून थांबून जाय,
माया तिच्या ह्रदयी, पायी स्वर्ग तिच्या हाय,
जगाहूनही जास्त मला प्रिय माझी माय,
मेहनत तिच्या नशीबी नेहमी कष्ट करत जाय,
माझ पोट भरुन कधी कधी स्वतः उपाशी राय,
कौतुक माझे होताना डोळे भरुन पाय,
जगाहूनही जास्त मला प्रिय माझी माय।।।-
यारों तनहाई के धूप में जली जमीं को,
मोहब्बत के बारीश की बूँदे नहीं भिगा पाती।।-
सह सकते हैं पर दिखा नहीं सकते,
रो देते हैं किसी को बता नहीं सकते,
लगता हैं पेट को किसी ने अंदर से निचोडा़ हैं,
रीड की हड्डी को किसी ने हथौडे़ से तोड़ा हैं,
मुड स्विंग्स और शरीर से निकलती अलग ही घिन,
तुम्हें क्या पता कैसे होते हैं हर महीने के वो पाँच दिन,
वो दर्द वो तकलीफ वो लडकी का एहसास,
वो निकलती जान रुकी रुकी सी हर सास,
वो चिडचिडापन वो बात बात पर गुस्सा,
थोडीसी राहत वो पार्टनर से प्यार जरासा,
मुश्किल रातो में अच्छेसे पेश आना नहीं हैं मुमकिन,
तुम्हें क्या पता कैसे होते हैं हर महीने के वो पाँच दिन,
वो दर्द में होकर सबको अच्छा दिखाना,
ऐसे दिनों में ईश्वर के करीब नहीं जाना,
वो लोगों का देखने का नजरिया झेलना,
चेहरे पर हसी रख जानलेवा दर्द से खेलना,
जो चाहता है सब मिलेगा थोड़ा रख यकीन,
तुम्हें क्या पता कैसे होते हैं हर महीने के वो पाँच दिन।।-