मिलती है जो हसीना एक बार सभी से,
कल मुझसे भी मिली वो आकर ज़मीन पे।
थे होंठ भी गुलाबी औऱ बाल सुनहरे,
मुस्कान पे उसकी थे यमराज के पहरे।
आकर वो बोली मुझसे मेरे साथ चलोगे,
चलते हैं कहीं औऱ या फिर यहीं पे मरोगे।
थी हुस्न की वो खान एक कमसिन सी कली थी,
कल सामने से मुझको मेरी मौत मिली थी।
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कलम उठाया आज, बड़े दिनों के बाद
सोचा लिखें कुछ दिलचस्प,
लिखा तो बहुत,
पर जाने क्यों चुप थे वो हर्फ
जिन पर तेरा नाम न था।-
यूं हुक्मरानों की बंदगी अच्छी नहीं ज़नाब,
तीख़ी तेरी ज़बान है,कुछ तो सवाल कर।
उलझा रहेगा कब तक फ़र्ज़ी की खबरों में,
लिख के अब पन्ने पे खूँ,कुछ तो बवाल कर।
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उन बीते लम्हों को ग़ालिब,
ज़िंदगी की रहगुज़र में तज़ुर्बे से बड़ा कोई रहबर नहीं होता।
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तेरे ही अंदर बसा है वो, तुझसे जुदा नहीं रहता,
मंदिर मस्जिद गिरिजाघर में तेरा ख़ुदा नही रहता।
ढूंढे क्यों तू काबा काशी,वो तो है सचराचर वासी,
देख मुझे तू नियम में बंधकर, ऐसा तो वो नही कहता।
मंदिर मस्जिद गिरिजाघर में तेरा ख़ुदा नहीं रहता।-
अज़ब सी नमी है आज मौसम में बाहर,
शायद ज़मीं ने रुख फेरा है आसमानों से अपने।-
बातों के बनने से इतना क्या डर गए ग़ालिब,
के उम्र भर के लिए होंठ सिल लिए तुमने।-
रोने से दिल का दर्द कम नही होता,
और दुष्टों के चले जाने से अब ग़म नही होता😂-
प्रेम आलोचना करता है,प्रेम नुक्ताचीनी करता है।
प्रेम वो है जो जहाँ जहाँ मिठास की कमी होती है वहाँ वहाँ अपनी शहद सी आंखों से शहद सी बोली से मिठास भरता है।
कुछ और करने की गुंजाइश है प्रेम...थोड़ा सा सुधार... थोड़ा सा आगे बढ़ना और थोडा सा प्रेम करना ही प्रेम है।
ये कभी सम्पूर्ण नही होता.....या यूँ कहें कि निन्यानवे का फेर होना....... यही प्रेम है उस एक को पाना जो आपके प्रेम को सौ कर दे।-