हा, मेरी अधूरी सी मोहब्बत आज भी पूरी लगती है।
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कुछ शौक है, तो कुछ लोगो को पढ़कर सिख लेता हूं।
निकलूंगा ज़रूर किसी रोज़ इस अंधेरे से,
और पाऊंगा खुद को कभी उजाले में,
आने दो सवेरा मेरा भी,
फिलहाल हर रोज़ मर के जी रहा हूं इन शामों में।-
गुज़रते वक़्त की इस धीमी सी आँच मे उसकी
यादें जल रही है कहीं,
उससे जाके कह दो कोई इंतज़ार की लौ अब
बुझने को है।-
मेरी कुछ आदतों मे से एक आदत ये भी है,
रब की इबादत से पहले जो करूं वो इबादत तेरी हीं है।-
किसी मोड़ पे पहुंच कर तुम भी रुकना मेरे इंतज़ार मे कभी,
एक उम्र मैने तुम्हारे साथ तुम्हारे बगैर गुज़ारी है।-
मैं वहां अब हूं हीं नही जहां तू तलाशता है मुझे,
काश तुने कभी खुद के अंदर भी मुझे ढूंढा होता।-
रिश्ते दरमियां गहरे होते गये,
जो झूठ था वो वैसे वादों को निभाने की
बातें कर गया।
मैं वहीं रुका उसकी यादों को समेटता रहा,
और वो किसी और के साथ आगे बढ़ गया।-
बेवफ़ाई करके भी वो औरों से वफ़ा
की बातें करती है,
सुना है, नाम जब भी आता है इश्क़ का,
मिसालें वो मेरी दिया करती है।-
मैं सब कुछ जान कर भी अंजान रहा,
मैं हक़ीक़त जान ना जाऊँ, इस बात से तू परेशान रहा।-
कितनी अलग है ये असल की
दुनिया मेरी ख्वाबों की दुनिया से,
ख्वाबों में मै किसी भी किरदार
मे रहूँ, फिर भी मैं ही रहता हूं,
और असल जींदगी मे किरदार कितना
भी सच्चा हो फिर भी फरेब ही लगता है।-