Aŋshu   (हिमांशु त्रिपाठी)
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Joined 23 October 2017


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Joined 23 October 2017
29 MAY 2020 AT 0:53

मैं हर रोज तुम्हें एक ख़त लिखता हूँ
इस आस में कि किसी रोज तुम्हारा जवाब आयेगा
इंतजार करता हूँ डाकिये का
पर नहीं आता कोई डाकिया
फिर पढ़ने लग जाता हूँ तुम्हारे उन ख़तों को
जो संभाल कर रखे हैं अब तक
जिसमे कई दफ़ा तुमने जिक्र किया है हमारे साथ रहने का
इस जहाँ से दूर अपनी एक दुनिया बनाने का
तुम्हारा हर सुबह चाय लेकर गीले बालों की लटों से मुझे जगाने का
कितने एहसास भरे हैं उस ख़त में
पा लेता हूँ मौजूदगी उसे पढ़ कर
तुम्हारे पास होने की
तुम्हारे साथ होने की
क्योकि मैं जानता हूँ नहीं आयेगा कोई जवाब उस पते से
फिर भी लिखते रहना चाहता हूँ तुम्हें हर रोज एक ख़त
फिर वही इंतजार
और फिर एक ख़त
बस ये सिलसिला चलता रहता है यूँ ही..

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27 MAY 2020 AT 23:07

एक ख़त तुम्हारे नाम का छुपा रखा है मैंने
कभी जब तुम आओ तो देखना
कितने एहसास भरे हैं उसमें
बहुत कुछ छुपा हुआ मिलेगा तुमको
अगर ढूंढ पाओ तो ढूंढना
कैसे तुम्हारे इंतज़ार के पल गुजरे
कैसे तुम्हारे बिना साँसों का आना जाना रहा
कैसे भीड़ में खुद को अकेला पाया
कैसे रखा खुद को संभाल हर बुरी शय से
आओगी जब तुम तो देखना
प्यार भी भरा मिलेगा इसमें
जो छोड़ गये थे दिनों दिन का
वो सब भी साथ है इसमें
कुछ प्यारी सी शिकायत भी मिलेगी
कुछ उलहाने भी हैं
कुछ शरारते भी हैं
कभी जब तुम आओ तो देखना..

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19 MAR 2020 AT 1:36

काश कि तुम कोई मौसम होते
हम करते सांस सांस
सुबह से शाम नब्ज़ नब्ज़
दिन से रात बैठकर
इन्तज़ार तुम्हारे लौट आने का..

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3 MAR 2020 AT 11:36

रोज सुबह एक नई उम्मीद
रोज शाम फिर वही उदासी..

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2 MAR 2020 AT 4:13

ना समझ की जिन्दा हूँ
साँस आती है
जाती है
यूँ ही..

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28 FEB 2020 AT 20:07

चलते चलते आज अचानक पीछे मुड़कर देखा तो
कुछ यादें हौले-हौले से मुस्कुराती हुई साथ चल रहीं थीं
बड़ा सुकून मिला उन रिश्तों को जब उन्हें अपने क़रीब पाया
मैंने पूछा हमें क्यों भुलाया
रिश्तों ने कहा यादों से पूछो
तुम्हें तो पीछे मुड़कर देखने की फ़ुर्सत तक न थी
हम ने पल-पल साथ निभाया
साथ चले तुम्हारे बनकर तुम्हारा साया
इतना सुनते ही सच में
आज एक बार फ़िर से दिल भर आया
रिश्तों ने यादों को गले लगाया
और चुपके से कानों में गुनगुनाया
आओ फ़िर से जी लेते हैं
उन पलों को साथ लेकर हम दोनों खुशियों का रस पी लेते हैं..

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4 NOV 2019 AT 1:39

लाख बन्द करने पर भी दरवाजे को
खुशबू की उंगली थामें
हर रोज़ चली आती हैं यादें तुम्हारी..

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27 OCT 2019 AT 3:01

सुनो..
अभी तुम्हें याद किया मैंने
तुम्हें महसूस हुआ..??

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25 OCT 2019 AT 1:06

सोच रहा हूँ इस दिवाली
घर की तरह दिल को भी सजा दूँ
इसे बेकार की यादों से खाली कर
झाड़ पोंछ कर साफ करा दूँ
कुछ दीवारों का रंग रोगन हो
तो कुछ पर नई सजावट हो
कुछ सीले हुए ख़्यालों को धूप दिखला दूँ
फिर इस साफ सजे उजले से घर में तुम्हे बुलाऊँ
देर तलक मैं देखूँ तुमको
थोड़ा सा मैं भी इठलाऊँ
ये दिल भी प्रकाशमय हो जाये
कुछ यूँही मेरी भी दिवाली मन जाये..

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21 OCT 2019 AT 1:34

थोड़ा सा शर्माती है वो
मेरी नज़्म अब भी गुनगुनाती है वो
शायद अकेली है वो
सर्द पड़ गए है वो लम्हें
जिन्हें कभी रातों में तापा करते थे
कुरेद कर देखो तो हर अंगारा
कोई पल शायद अब भी जलता है
एक याद अटकी है उसकी पुराने पीपल पर
धागे मन्नत के शाखों पर बंधे हुए हैं अब भी
दबे पाँव दहलीज़ पर रोज चला आता है चाँद
और बस गली में सुनाई देती है दूर तक एक दस्तक अब भी..

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