अपने ही अक्स से आ मिले, दिखने में कुछ मुझ सी है बस हँसती वह बिन किसी सोच के है, बेफिक्र है मदमस्त भी, आप ही आपकी सहेली है आप ही अपनी रक्षक भी, दिखती वह मुझ सी किंतु मुझसे बेहतर है, हां वह मैं ही तो हूं वो मेरा ही तो अंश है।
पर भूल पाना कब आसान होता है, आज भी वह हँसी याद आ जाती है और बातें उसकी दिल को गुदगुदा जाती हैं, कहकर भी हम कुछ कहते नहीं पर स्मृतियां अक्सर बोल जाती हैं, सच कहें तो ये दिल भी कहां कभी कुछ भूलना चाहता है।
Fingers typing away An assignment, While the mind dreams Of a cool breeze While on vacation, Miles apart the yearning and the realities While she tended to her daily duties.
और इक इंसान तन्हा हो गया, गए तुम जो मुसाफ़िर बनकर तुम्हारे पीछे सब रूठा सा रह गया, इक दिल तन्हा रह गया, काश रुक पाते कुछ पल तुम और यात्रा से ज़रूरी होता तुम्हारे लिए वह घर, तो कहानी का अंत कुछ और होता और दिल के घर को कोई न फिर मकान कहता।
असमंजसों ले घेरे में हैं, सवालों से जूझते उत्तर की तलाश में थे, कि तभी एक गुलाबी चुनरी हँसते हुए वहां से निकली, पूछने पर उसने कहा रुके किस के लिए ज़िंदगी, हैं उलझने तो वही सही, पर जीने की इच्छा उससे प्रबल है तो फिर रुके क्यों उसकी आत्मा की नदी।
कि ज़िंदगी अकेले मुखौटों की भीड़ में कटेगी कैसे, फिर याद आता है साथ मेरे मेरा रब है, और किसी का हाथ सदा मेरे सिर पर है, फिर भयमुक्त होकर इस गगन में उड़ जाती हूं, क्षितिज को छू आसमान अपने नाम लिख आती हूं।