अंदाज़-ए-आशिकी 💞   (Krishna Kaveri "KK")
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Joined 2 August 2022


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वक्त हम से खेलता रहा,
और हम जिंदगी से खेलते रहे,
फिर देखते ही देखते सब धुआं-धुआं सा हो गया!

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ये दुनिया भी क्या खूब हुई!
ना रिश्तें कभी अपने हुए!
ना प्यार कभी सच्चा हुआ!
कोई दिल को तोड़ गया!
कोई दिमाग से खेल गया!
कोई आशियाना लूट गया!
यहां जागीरें भी छूट गई!
यहां तकदीरें भी रूठ गई!
यहां वारदातें भी खूब हुई!
ये दुनिया भी क्या खूब हुई!
ना रिश्तें कभी अपने हुए!
ना प्यार कभी सच्चा हुआ!

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आओ किसी दिन सुहाने एक सफर पर चलते है।
तुम आगे-आगे चलना हम तुम्हारे पीछे चलते है।

राहों में चलते-चलते सुंदर फूलों को चुनते है।
फिर उनसे खूबसूरत प्यारे पलों को बुनते है।

तपती धूप जलाए तो पेडों की छाया में छिपते है।
फिर थाम एक-दूजे का हाथ होले से मुस्काते है।

करीब बेहद करीब आकर आँखों-आँखों में खो जाते है।
लबों से तो कुछ कहते नहीं बस नजरों से कह जाते है।

आओ किसी दिन सुहाने एक सफर पर चलते है।
तुम आगे-आगे चलना हम तुम्हारे पीछे चलते है।

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You seem as bright as the moon and the stars.

You look as lovely as spring.

You decorate words very delicately.

You are a beautiful and kind hearted angel.

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जिंदगी का सफर मुश्किल नहीं, बहुत ज्यादा मुश्किल है!

पूछो उनसे, जिनके पास खाने के लिए खाना नहीं होता है।
दिन-रात मजदूरी करते है फिर भी भूख नहीं मिटती है।

पूछो उनसे, जिनके पास शरीर ढकते के लिए कपड़े नहीं होते है।
दुनिया भर की नजरों से घूरे जाकर शर्मिंदगी झेलते है।

पूछो उनसे, जिनके सर पर छत नहीं होती है।
दिन तपती धूप में और राते अंधेरों में कटती है।

जिंदगी चलती है,
"जिंदगी की आधारभूत जरूरतों से"
जब आधारभूत जरूरतें ही नहीं तो कैसे कह सकते है?
"जिंदगी का सफर मुश्किल नहीं"

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जिम्मेदारियों के धूप में हसरतें जलती रहती है।

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यूँ आएगी।
गमों को,
दूर भगाएगी।
लबों पर,
कली खिल जाएगी।
खुल कर,
फिर वो मुस्कुराएगी।

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इस कामयाबी का आलम ना पूछिए जनाब!
साधारण सा चेहरा भी चौदहवीं का चाँद नजर आता है!
फीका-फीका लिबास भी आफताब नजर आता है!
अपने हो या गैर सब संग नजर आते है!
बदले-बदले से उनके ढंग नजर आते है!
इस कामयाबी का आलम ना पूछिए जनाब!
बातों में जिनके कभी चुभने वाले कांटे खिला करते थे!
वहीं आज कल फूलों की बारिश किया करते है!
जिनके लिए बेकार थे और किसी काम के नहीं थे!
उनके द्वारा अब प्रतिभाशाली कामकाजी कहे जाने लगे है!

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वसंत की बहारों को,
कहाँ पता होता है वीराना क्या होता है?
पतझड़ की ख़ामोशी क्या होती है?
शांखो से टूटना क्या होता है?
अपनो से छूटना क्या होता है?
तन्हा होकर आशियानों को खोना क्या होता है?
वसंत की बहारों को,
कहाँ पता होता है वीराना क्या होता है?

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यूँ ही इतिहास नहीं बनता।
यूँ ही कोई नहीं निखरता।

मेहनत की आग में वो जलता।
लगन के साँचों में वो ढलता।

कभी चटकता, कभी दरकता।
कभी बिगड़ता, कभी बनता।

धीरे-धीरे फिर वो सुधरता।
नई पहचान बन कर उभरता।

एक दिन में कोई चमत्कार नहीं होता।
निरंतर अभ्यास किए बिना कोई कामयाब नहीं होता।

यूँ ही इतिहास नहीं बनता।
यूँ ही कोई नहीं निखरता।

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