प्यार एहसाह , जो किसी के जाने के बाद शुरू हो ।
प्यार रिश्तों का सुहाना सफर जिसका कोई रिश्ता ना हो।-
मां एक प्रतिमा =
लिखने को है बोहोत कुछ
कहने को है बोहोत कुछ
पर लिखूं कहूं तो शब्द कम पड़ जाए,
जो है अपने में सब कुछ।
उसकी क्या रचना करू
जिसकी खुद में रचना हूं।
उसकी क्या तुलना करू,
जिसकी सांसें मुझमें हो ।
उसको क्या अर्पित करू,
जिसका जीवन मुझको समर्पित हो।
वो मां ही है, जो गम का प्याला पी कर भी,
चेहरे पे मुस्कान धरे।
वो मां ही है,जो दुखो को सी कर भी,
अपनी सन्तान से प्यार करे।
वो शायद प्रतिबिंब है उसका,
जिसको मालिक दुनिया कहती है।
शायद वो स्वरूप है उसका,
जिसको तारणहार बुलाती है।
में नहीं जानता ईश्वर को
पर मैने मां को देखा है,
कहता मेरा मन सदा ही यू,
शायद वो मां के जैसा है।
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तू मारती, तू डाटती, तू ही तो प्यार दिखलाती मां
तू सवारती, तू निहारती , तू ही तो ममता जताती मां।
तुझे देखता ,तुझे चाहता,
तुझको ही जी से मांगता मां।
तुझे खोने से ही भर आए ये दो नयन मां।
तुझे देख लू ,तुझे चूम लू,
तुझे रख लू ,सदा ही अपने पास मां।
क्यू हुआ बड़ा, में तब ही बच्चा ठीक था,
में तेरा था, तू मेरी थी, ये जग भी तब ढीठ था,
अब डर है,मुझको इस दुनिया का,
ये खोफ मुझे दिखलाते है,
रुपया ,पैसा,ओर शोहरत का रुतबा मुजपे जताते है।
फिर से रख ले उस कोख में अपनी,
वो घर ही सबसे प्यारा था।
ये दुनिया है सब झूठ सांच की,
तुझसे ही प्रेम सच्चा था।
मां जनता हूं ,मानता हूं,
है ये सब, कठिन नाते मां,
तू सदा अडिग थी, सदा जीवित थी,
मेरी रगों ओर सांसो में मां।
आ जोड़ दू ,आ थाम लू ,
पहले वाले नाते मां,
में आज भी तेरा लल्ला हूं,
तू वहीं मेरी प्यारी मां।
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