ananya rai   (Ananya Rai Parashar)
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Joined 16 April 2019


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10 MAR 2022 AT 8:39

खुशियों की फुलझड़ी छोड़ना अच्छा लगता है
प्यार बिछाना प्यार ओढ़ना अच्छा लगता है।।

सब एक ही रब के बंदे सबको शीश झुकाती हूँ
हाथ मिलाना हाथ जोड़ना अच्छा लगता है।।

©अनन्या राय पराशर

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27 FEB 2022 AT 9:48

जाने पहचाने लोग सभी अंजाने हैं
जो मेरे अपने हैं वो ही बेगाने हैं।।

कौन रहेगा क़ैद मेरी इस रानाई का
इक दिन तो ये सारे पंछी उड़ जाने हैं।।

वैसे इजाज़त देती नही बेताबी मेरी
मुझको फिर भी गीत सुकूं के कुछ गाने हैं

इश्क़ के ख़ातिर लड़ जाते थे दुनिया से जो
ढूंढ़ रही हूँ आज कहाँ वो दीवाने हैं।।।

मुझको भी उम्मीद है एक दिन आएगा जब
उसके दिए सब ज़ख्म वफ़ा के भर जाने हैं।

रोज़ वही इक मायूसी मारे जाती है
रोज़ वही इक ज़िंदा रहने के ताने हैं

इक शहजादा की शहजादी और वफाएं
यारों अब ये अफसाने तो अफसाने हैं

© Ananya Rai Parashar

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19 FEB 2022 AT 9:35

उसे तू देखता है जब भी वो अपना सा लगता है
वो फिर भागा हुआ आकर तेरे सीने से लगता है।

©अनन्या राय पराशर

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14 FEB 2022 AT 13:58

फ़ेसबुक पे एक लाड़ली को ऐड कर लिया।
हालत को जाग जाग उसने बैड कर लिया।
लड़की ने खुद का नाम जब गजेन्द्र बताया।
नस काट के लड़के ने खुद को डेड कर लिया।

©अनन्या राय पराशर

🤣🤣😂😂😂😂

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11 FEB 2022 AT 16:26

तुम ना आओ नज़र तो आंखों को
एक पल भी सुकूं नहीं मिलता।।।

©अनन्या राय पराशर

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31 JAN 2022 AT 10:45

लिखूँ आज कुछ ऐसा
जिसे पढ़ अनुरंजित हो संसार
या लिखूँ आज कुछ ऐसा
अनुरणन हो मच जाए हाहाकार।।

बन अनुरागी अनुराग लिखूँ
या बन जाऊं कवि जिम्मेवार
अनुप्रेरित करूं अनुपदिष्ट को
या करूं अनुरूपता का प्रचार।

अनुलेपन कर परोसूं झूठ को
या झूठ पर सच का करूं प्रहार
अनैक्य देख पक्षपात करूं
या भाईचारा स्वयं अनुसार।।

ख्याति लिखूँ इस देश की
या गरीबी , भुखमरी अपार
गंगावतरण सा पावन लिखूं
या भक्षिका कर्मनाशा का प्रहार।।

विरत को निरत लिखूं
सवर्ण का लिखूं दिगंत छविधार
यथापूर्व यथाविधि लिख दूँ
या विश्लेषण कर मिटाऊं सभी विकार।।

विनिमय कर सुख दुःख का
विश्वश्त बने ये जग- संसार
साहित्यिक सुखद टेर लिखूं
या क्रंदन करता अक्षर सार।।

©अनन्या राय पराशर

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4 JAN 2022 AT 0:24

( मनहरण घनाक्षरी छंद )

विनती करूं मैं नाथ,दर पे टिका के माथ,
एक क्षण मुझे भी निहारो मेरे राम जी।

जैसे दसशीश के कुटुम्ब को उतारा ठीक,
वैसे मुझे भव से उतारो मेरे राम जी।

सबकी सँवारो आप,बिगड़ी हे!दया सिंधु,
सुनो एक मेरी भी सँवारो मेरे राम जी।

जैसे शबरी के यहां,आये बेर खाने आप,
वैसे मेरे घर भी पधारो मेरे राम जी।

©अनन्या राय पराशर

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23 SEP 2021 AT 9:39

ग़म में अपने कमी तो होती कभी
ज़िंदगी ज़िंदगी तो होती कभी ।।

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16 SEP 2021 AT 10:20

उसने जब भी कभी मुहब्बत की
जैसे मुझपे कोई इनायत की


डूब जाते हैं अहल-ए-दिल इसमें
मैं वही झील हूं मुहब्बत की


फिर मेरे रूबरू वो आया है
फिर ख़बर हो गई कयामत की


होंट पर होंट रख दिए मैंने
क्या जरूरत है अब इजाज़त की


जब तेरा लम्स हो गया हासिल
किसको परवाह कोई जन्नत की


ऐसे मंज़िल नहीं मिली मुझको
मैने पाने को खूब मेहनत की


ग़मज़दों ने सजाई थी महफिल
और मैने वहां निज़ामत की


आज़माओ ना तुम अनन्या को
हद्द होती है इक शराफत की


©अनन्या राय पराशर

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4 AUG 2021 AT 17:16

मेरे जीवन से ख़त्म ग़म करते
याद करते मुझे करम करते

तुम ज़्यादा नहीं, न कम करते
पर मुहब्बत मुझे सनम करते

गर नवाज़िश नहीं सितम करते
अपना पल पल मेरे बहम करते

चूम लेते मेरे लबों को तुम
हम इनायत तेरी रकम करते

शब गुजरती तुम्हारी बाहों में
तुम कभी सच तो ये भरम करते

तुम मुहब्बत हो इश्क हो मेरा
तुम ये कहते तो रश्क हम करते

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