चलो आज बात कुछ यूँ कर ले
अपने अपने दायरों का हिसाब कर ले
तेरे हिस्से में कितना तू आता है
मेरे हिस्से में कितनी मैं
चल आज ये बात भी साफ़ कर ले-
मौसम वही पुराने रहते हैं सिर्फ तारीख बदल जाती है।
हकीकत सा ये दिसम्बर जनवरी का ख्वाब दिखाता हैं...
बदलता तो कुछ नहीं बस घर मे कलेण्डर नया आ जाता है.-
ये आती जनवरी ये जाता दिसंबर
ना हमें बदल पाएगा ना तुम्हारी यादों को
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हमसफर न बन सके, हमराज़ बनकर रह गए,
तुम हमारी हसरतों का ख़्वाब बनकर रह गए...!!!-
मुकम्मल होने की आदत न रही अब मैं बिखर कर निखरने का हुनर जानती हूँ।
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परीक्षा भी लेते हो तो पार भि तुम्ही लगाते हो इसीलिए तो महादेव इस दिल को तुम ही भाते हो।🌸♥️
श्रावण मास का
पहला सोमवार शुभ हो...!-
आंखों से भी लिखी जाती हैं दास्ताने,
हर कहानियों को कलम की ज़रूरत नही होती-
क्यो हम किसी को खो जाने के ठीक पहले तक उसे बता नहीं पाते हैं कि हम उन्हें कभी खोना नहीं चाहते थे।
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सुना भी कुछ नहीं कहा भी कुछ नहीं पर ऐसे बिखरी है ज़िन्दगी की कसमकश में कि टूटा भी कुछ नहीं और बचा भी कुछ नहीं।
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