एक अजीब खालीपन है मुझमें
जबसे तुझसे भर गया हूँ मैं...-
बस चल रही है तलाश, खुद की खुद में...
चाय ठंडी हो रही है
दो कप, उस शाम के इंतजार में
पियालों पे तेरे होंटो के निशान
जो शायद ही उन्हें नसीब हों
ओर मुझे वो शाम
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दुनिया ने मुझ को क्या नहीं समझा
इक तू जो मुझ को था नहीं समझा
जब उसे देखा मैंने पहली दफा
ख़ुद से उसको जुदा नहीं समझा
कैसे मैं मानू तूने इश्क़ कि और
दिलरुबा को ख़ुदा नहीं समझा
जो था तक़दीर में वो मान लिया
पर उसे बेवफ़ा नहीं समझा
आपने दुख मेरा नही समझा
मैं ने दुख आपका नहीं समझा
उस को समझा गया बस एक बदन
और किसी काम का नहीं समझा-
तिरे जाने से क्या खुशी रह गई है
ले दे के तो बस ज़िन्दगी रह गई है
जुदा होके तुझ से ये मैं ने है जाना
मेरी रूह तुझ में बसी रह गई है
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जब उसे देखा मैंने पहली दफा
ख़ुद से उसको जुदा नहीं समझा
कैसे मैं मानू तूने इश्क़ कि और
दिलरुबा को ख़ुदा नहीं समझा-
झूम रहा तेरे इश्क में जग सारा मोहन
इश्क का तूने ऐसा स्वाद चखाया मोहन
नाम न जानू कोई में, न मैं जानू संसार
इक तेरे सिवा दुनिया में सब माया मोहन
तुम भी तो मोहन आधे हो राधे के बिन
इसलिए तो कहते सब तुमको राधा मोहन
संसार के हर इक ज़र्रे में है समिल तू
गर तुझको ही न पाया तो क्या पाया मोहन
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जब से तू गाँव से गया है यार
शहर ए दिल सूखा सा पड़ा है यार
छाँव में जिसके गुजरा बचपन था
वो शज़र आज भी हरा है यार
फोन करता न ही कोई मेसेज
किस के चक्कर में तू पड़ा है यार
वो गई छोड़ के, तो जाने दे
होता क़िस्मत में जो लिखा है यार
चल कहीं बैठ पीते हैं सिगरेट
कितने दिन बाद तू मिला है यार-
उनकी नज़रों में बेजान हूँ मैं
इक ज़रूरत का सामान हूँ मैं
यूँ तो हासिल नहीं मैं किसी को
पाना चाहो तो आसान हूँ मैं
देख उस को परेशानी में यूँ
क्यूँ हो जाता परेशान हूं मैं
सब को बाहर से दिखता मैं इंसाँ
निकला अंदर से शैतान हूँ मैं
हूँ किसी के लिए मैं ही दानव
और कोई कहता भगवान हूँ मैं
आखरी वक्त पे काम आया
जैसे इक मानो शमशान हूँ मैं-
नींद पलकों पे रख रातभर सोचा है
क्या बताऊं तुझे किस कदर सोचा है
क्या कभी वो मुझे सोचती होगी भी
मैंने इस बात को उम्रभर सोचा है
सोचता है तू सब हैं गलत, पर कभी
ख़ुद को आईने में देखकर सोचा है
सोचना क्या किसी के लिए रात दिन
क्या कभी तुम ने इस बात पर सोचा है-