Anand Sharma   (Anand Sharma Balaji)
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In the search for future
Joined 28 March 2019


In the search for future
Joined 28 March 2019
16 SEP 2022 AT 15:30

साॅंस रुकती थी पहले तेरे बिन
अब सुकूँ है तिरी कमी से भी
दोस्तों से गिला है अपनी जगह
कुछ शिकायत है ज़िन्दगी से भी

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21 MAY 2022 AT 11:58

हमें जो पीनी है मय-कदों में नहीं मिलेगी
किसी के दिलकश हसीं लबों में नहीं मिलेगी
जो एक धारा हमारी तिश्ना-लबी मिटा दे
तुम्हारी वादी के पर्बतों में नहीं मिलेगी
ख़ुतूत होंगे, खुलूस होगा, ख़ुमार होगा
हवस हमारी मुहब्बतों में नहीं मिलेगी
अदब, ह़या और सब्र से ख़ूब काम लेना
ये इक सिफ़त आज आशिक़ों में नहीं मिलेगी
रहे-ख़ुदा की अज़िय्यतों में भी है जो राहत
कभी भी दुनया की लज़्ज़तों में नहीं मिलेगी
कि हम फ़क़ीरों के घर में तंगी ज़रूर होगी
ज़रा भी तंगी कभी दिलों में नहीं मिलेगी
नहीं मिलेगा जहाँ में कोई भी हम सा 'आनंद'
हमारी ह़िद्दत भी शाइरों में नहीं मिलेगी

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23 JAN 2022 AT 8:33

मेरे जीने के लिए अब न कोई दुआ कीजिए।
उसे जल्द अलविदा कहूं ऐसी दवा कीजिए।।

बहुत जी लिया हूं यारो गम के साए में हमने।
मुझे जश्न मनाकर इस जहां से रिहा कीजिए।।

उसकी मुहब्बत का एकतरफा गुनहगार हूं मैं।
बेवफा बनकर आप भी यही खता कीजिए।।

उसकी खामोशी मेरे जख्म को भरने नहीं देती।
आप जी भरकर मेरे हालात पर हंसा कीजिए।।

दुश्मन भी मेरी बर्बादी पर रोज आंसू बहाते है।
आप अपने होकर रोज-रोज न लुटा किजिए।।

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23 JAN 2022 AT 8:27

मत भूल जाना रास्तों को ऐ मुसाफिर,
अपनी मंज़िल पा ले जब तू,
इन्हीं रास्तों पर चलकर ही तो,
तूने मंज़िल को पाया है,
इन्हीं रास्तों ने ही तुझे पता मंज़िल का बतलाया है,
साथी तेरा दिन रात बने हैं,
थक गया जब तू चलते चलते,
रास्ते के पेड़ों ने तुझे मीठी नींद में सुलाया भी है,
नदिया से पिया तूने पानी मीठा,
ठंडी हवा ने गा कर कोई सुरीला नग़मा,
मन तेरा बहलाया भी है,
पर्वत बने तेरी हिम्मत,
पर्वतों ने रास्ता तुझे दिखलाया भी है,
चला है तभी तो बेख़ौफ होकर इन रास्तों पर,
इन्हीं रास्तों पर चला संग तेरे तेरा साया भी है,
होकर अकेला भी तू अकेला ना चला,
चला तू जिधर को तेरा रास्ता भी उधर को चला,
ले गया तुझे तेरी मंज़िल तक,
मत भूल जाना रास्तों को ऐ मुसाफिर ।

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19 JAN 2022 AT 21:23

अहसासे ग़मे हिज्र बढ़ाने के लिए आ
इस बार मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
बेचैन तेरे वास्ते कब से हैं निगाह
आ दिल पे मेरे बर्क़ गिराने के लिए आ
मालूम है मुझको तेरी फ़ितरत की हक़ीक़त
झूठा ही सही प्यार जताने के लिए आ
अब जान ही ले ले न कहीं दर्दे - जुदाई
तू वस्ल की तक़दीर सजाने के लिए आ
है वक़्ते नज़ा आ मुझे बाहों में तू भर ले
इस आखरी हसरत को मिटाने के लिए आ
दो फूल मेरी क़ब्र पे रख दे कभी आकर
तुर्बत पे मेरी शम्आ जलाने के लिए आ
इस बज़्म में आनंद की मुहब्बत का भरम रख
एक बार ही, दुनिया को दिखाने के लिए आ

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18 JAN 2022 AT 23:11

उजड़ी हमारी बस्ती कुछ इस तरह,लोगों के घर बसाते बसाते
कहॉ ढूढें अपने तिनके ,जो उड़ गये हवा के झोखे से ।
ना गिला मुझें खुशियों से ,ना शिकवा किया कभी मैनें बहारों से
काश वक्त रूक गया होता और मैं चल दिया होता आगे
जिक्र क्या करू अपनों का ,बयां करता है मेरा चेहरा
लोग देखते है आईना और मैं आईना ढूढॉ करता हॅू ।
ना गुजारिशें रही , ना कोई अब आरजू मेरी बाकी
रह गया महफिल में तन्हा , जिन्दगी तेरी और क्या तारीफ करू मैं

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14 JAN 2022 AT 9:20

हमें यूँ छोड़ के गम-ए-जद में तू भी आएगी।
बस हम ही थोड़ी फुरकत में तू भी आएगी।

तुझ से बिछड़ कर क़ातिल लगता है ज़माना ,
निशाना हम ही थोड़ी दहशत में तू भी आएगी।

संजीदा किरदार था तुझसे पहले कभी मैं ,
अब पागल हम ही थोड़ी वहशत में तू भी आएगी।

मैं तो ठोकरों का आदी हूँ तेरा क्या ?
मंजिल भटके हम ही थोड़ी गुरबत में तू भी आएगी।

मैं तो ज़माने के तानों से वाकिफ हूँ अपनी सोच ,
सर झुकाए हम ही थोड़ी गैरत में तू भी आएगी।

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11 JAN 2022 AT 19:47

इंसानियत का दुश्मन है वो,इंसानों से जलता है
हाकिम ऐ शहर बड़ी नफरत से हमें कुचलता है

माना लाखों लश्कर हैं उस काफिर के साथ,मगर
हुक्म ऐ इलाही से ही हर जंग का रुख़ बदलता है

वो चिटियां हाथियों को भी मार देतीं हैं काट कर
हकीर समझकर जमाना पैरों से जिन्हें मसलता है

आसान नही देख पाना आंखों को मुश्किल होती है
जिस झाड़ पर हो गिरगिट वैसा ही रंग बदलता है

खारे पानी से तब जाकर नमक के ढेर निकलते हैं
किसी लाश की तरह जब जिंदा आदमी गलता है

इतना आसान नही ऐ'आनंद'दशरथ माझी हो जाना
पूरी जिंदगी खप जाती है एक रास्ता संभलता है

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11 JAN 2022 AT 19:36

किसको दिल का दर्द सुनाऊँ
कैसे दिल को मैं समझाऊं
मिलना चाहता हूँ मैं लेकिन
दूर बहुत है कैसे जाऊं
मेरे दर्द की दवा करा दो
कुछ तो दर्द से राहत पाऊं
चाँद सितारों के संग जागूँ
यादों के मैं दीप जलाऊं
खाबों मैं तो नित मिलते हैं
ए पर उनको छू ना पाऊं
कोई बतादे तन्हाई मैं
गीत विरहों के कब तक गाऊं
जाऊं तो कहाँ मैं जाऊं
किसको दिल की व्यथा सुनाऊँ

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11 JAN 2022 AT 19:32

हर आस के पीछे एक आस होती हैं
जानता हूं क्यों नज़रे तेरी उदास होती हैं
सोचने से सारा ताज तो मिलता नहीं
करने से ही लमहें कुछ खास होती हैं

बेकार की तन्हाई कर देती मायुश हमें
एक सांस के सिवा क्या अपने पास होती हैं
जाते है जाने वाले छोड़कर यादें अपनी
दो आंसुओं के बूंद में हर शै नाश होती हैं

ढल जाती हैं शाम शनै शनै अंधेरों में
कौन सी वो सुबह है जिसकी तलाश होती है
चुरा लो कुछ पल जिंदगी से वफ़ा की भी
इन्हीं पलों में शहद की मिठास होती है।।

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