Anand Prakash Jain   (अल्फ़ाज़_ए_आनंद)
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Joined 29 July 2019


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8 FEB 2022 AT 11:50

वारदात-ए-क़ल्ब छुपाएं नहीं जाते इज़हार करना पड़ता है
चराग जले है तो रोशनी करेंगे बस ऐतबार करना पड़ता है— % &

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8 FEB 2022 AT 11:38

वारदात-ए-क़ल्ब छुपाएं नहीं जाते इज़हार करना पड़ता है
चराग जले है तो रोशनी करेंगे बस ऐतबार करना पड़ता है— % &

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20 DEC 2021 AT 18:29

शोख आंखों पर यकीं कर लेना,
वो अब तक निर्मल है ।

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16 DEC 2021 AT 20:26

मंज़िल की चाह तो ज़रूर है, पर मैं ज़रा मुसाफ़िर मिजाज़ हूं,
ज़िंदगी में ठहर नहीं सकता, सफ़र मुझे ज़िंदा रखता है ।

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16 DEC 2021 AT 10:23

रस्म-ए-उल्फ़त का ये अजब नज़राना है,
इन आदिमों में हम कहां है? यहां तो हर कूचा वीराना है ।

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14 DEC 2021 AT 22:15

चेहरा वो आईना है, जो अनकहे राज़,
दिल के हर जज़्बात बयां कर देता है,
बस ज़रूरत है इक पाठक की ।

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3 DEC 2021 AT 16:45

जीत की हवस इतनी खतरनाक भी हो सकती है कि,
कई बार हम दुनियां जीतते जीतते,रिश्ते हार रहे होते है ।

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1 DEC 2021 AT 9:05

ए वतन कभी तो मौक़ा दे, तेरा शुक्राना अदा करने का,
तेरी नींव का पत्थर बन, तेरी शान में मरने का ।
देखा है सरहद पर मैने, तेरे बेटों को रक्षार्थ बेभान होते है,
मेरी भी ख्वाहिश है तेरे सदके में अनहद नाद करने का ।

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29 NOV 2021 AT 9:04

वारदात-ए-क़ल्ब छुपाएं नहीं,
जाते इज़हार करना पड़ता है,
चराग जले है तो रोशनी करेंगे,
बस ऐतबार करना पड़ता है ।

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25 NOV 2021 AT 21:22

मुझको तो आदत सी है ग़फ़लत में रहने की
तू इस बात पर परेशां ना हो,
आज़ फिर कोई हिस्सा टूट गया क्या
मुझको तो आदत है, पर तू हैरां ना हो ।

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