Anand Kumar Yadav   (आनंद यादव..✍️)
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मिसाल देने से अच्छा है कि खुद मिसाल बना जाए।
" All rights reserved for my quotes"
Joined 19 November 2019


मिसाल देने से अच्छा है कि खुद मिसाल बना जाए।
" All rights reserved for my quotes"
Joined 19 November 2019
14 SEP 2022 AT 17:48

"अरी हिंदी
तुम प्रतिदिन मुझसे मिलती हो।
कभी किताब की पन्नो पर,
तो कभी दीवार पर।
कभी मेरी डायरी में,
तो कभी किसी की शायरी में।

अरी हिंदी,
तुम कितनी चंचल हो,
तुम्हारी बोली में कितनी सौंदर्य है।
जब तुम वाक्य के रूप में किसकी कल्पना में,
मात्राओं के साथ सफेद कागज पर चलती हो,
तो ऐसा लगता है कोई उर्वशी स्वेत वस्त्र में,
किसी पगडंडी पर चल रही है।

अरी हिंदी,
तुम सब जानती हो लेकिन,
अनुभवहीन नायिका की तरह
अभिनय करती हो।
क्या तुम्हे ज्ञात नहीं है, कि
एक लेखक भी नायक ही होता है।
अंतर बस इतना है कि वो ,
कलम से अभिनय करता है और तुम शब्द से।
#हिंदी दिवस की शुभकामना #

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3 NOV 2021 AT 18:03

मुझे राजनीतिक पराजय भी स्वीकार है।
शर्त बस ये है,कि मेरा प्रतिद्वंदी तुम रहो।।

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30 SEP 2021 AT 23:03

प्रेम में तब तक स्वार्थ का जन्म नहीं हो सकता।
जब तक कि,
प्रेम को उसकी सभ्यता से बाहर नहीं निकाला जाए।।

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19 MAY 2021 AT 10:58

व्यर्थ ही दिल को बहलाया जा रहा।
फुसलाया जा रहा।
ढाढस बंधाया जा रहा।
जैसे दिल कोई नादान बच्चा है।
जो कच्चे खिलौने से भी,
बहल जाएगा।
जबकि,
ये बात मैं भी जानता हूं।
और तुम भी जानती हो।
कि,
प्रेम तुम्हे मुझसे हो ।
या मुझे तुमसे हो।
ये तो होकर ही रहेगा।
मगर फिर भी,
व्यर्थ ही दिल को बहलाया जा रहा।
फुसलाया जा रहा।

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10 MAY 2021 AT 9:36

कुम्हार का प्रेम  भाग - १

माथे पर कच्ची मिट्टी लेकर तुम आ रहीं थी l
तुम्हारी साड़ी धूल से सराबोर हो गयी थी l
लेकिन तुमने अपना चेहरा बचा लिया धूल को छूने से l
बड़ी चालाकी से साड़ी का एक खूंट होंठ से दबाकर।
मुझे मालूम है तुम्हें मेरे सिवा कोई छुए ये पसंद नहीं l
अभी कल ही की बात है तुमने मेहंदी लेवाने को कहा था।
उस मेंहदी का क्या करोगी जो रोज तेरी हथेली पर सजती है।
और कुछ देर बाद उतर जाती है।
मेरे मन की हर बात मिट्टी की लेप बनकर ,
तेरी तरहथी पर सजती है ।
उसका क्या करोगी ?
क्या तेरी हथेली पर मेंहदी लग जाने से वो रोज सजेगी ?
सोचो उस लेप धुलाने के बहाने मैं तुम्हारी हथेली की ,
स्पर्श का अनुभव ले पाऊंगा ?
यही सब सोच कर मैंने मेंहदी लेवाने को टाल दिया।

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16 MAR 2021 AT 22:06

हर हर महादेव की गुंज से।
संतो की वाणी कुंज से l
देखो कैसे इठलाता है,
एक शहर स्वयं पर इतराता है।

अपना न कोई ठिकाना हो।
यदि ज्ञान किसी को पाना हो।
परायेपन को भूलता है,
एक शहर स्वयं पर इतराता है।

गली गली कथा कथा।
हर मोड़ पर चंचल छटा।
सौन्दर्य से जैसे नहलाता है,
एक शहर स्वयं पर इतराता है।

जब घाट पर संध्या आरती सजती है।
मानो पुष्प गगन से बरसती है।
आस्था से मन पावनमय हो जाता है,
एक शहर स्वयं पर इतराता है।

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1 FEB 2021 AT 12:08

अगर मैं कानून का रिश्तेदार होता ,
तो तुमसे मोहब्बत करने की सजा मेरे हक में होती I

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16 JAN 2021 AT 19:49

जब कोई बहुत विचलित हो।
स्वयं से युद्ध लड़ रहा हो।
अग्नि के ऊपर राख की तरह,
उसका अस्तित्व रेजा-रेजा हो रहा हो।
वह मुश्किल से भी मुश्किल घड़ी में हो।
मेरा दावा है तुम्हारी एक झलक से
वह अपनी क्रोध पर भी विजय प्राप्त कर लेगा।

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10 JAN 2021 AT 15:10

शीर्षक :- " एक प्रश्न स्वयं से "

एक प्रश्न स्वयं से पूछता हूँ।
फिर ठहर जाता हूँ।
ये सोचकर कि,
प्रश्न स्वयं से है तो,
उत्तर भी स्वयं ही देना होगा।
फिर इस बात का निर्णय कौन करेगा कि,
उत्तर उचित दी गई है या अनुचित।
या कदाचित ये केवल,
मनोभाव को तस्सली दी गई है।
ठीक वैसे ही जैसे,
एक बच्चे की चांद के लिए हठधर्मिता को,
पिता तरकीबों से मना लेता है।
लेकिन एक प्रश्न स्वयं प्रश्न भी तो है।
तो क्या इसका उत्तर स्वयं उसे देना होगा।
या कोई कठघरे में खड़ा होगा उसके लिए,
या फिर न्यायाधीश अपनी लाल स्याही से,
उस प्रश्न के धधकते अहंग को,
दंड से सदा के लिए ठंड कर देगा।

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23 NOV 2020 AT 17:14

शीर्षक :- " चालाक शहर "

चालक शहर नोटों की ढ़ेर दिखाता है।
फिर इसारे से अपने पास बुलाता है।
जादूगरनी सी आंखें है इसकी,
घर से बहुत दूर भिजवाता है।
चालाक........................।

पिता ने रोका तो बुरा लगा मुझको।
इधर आया तो वजह पता चला मुझको।
बहन की राखी दूकान में पड़ी रही,
अम्मा की रोटी तवे पर आंसू बहाता है।
चालाक............................।

मसरूफ कर देता है खुद में खो जाने को।
षड्यंत्र करती शनाख्त भरमाने को।
तन्हाई में शराब की लत लगाता है।
चालाक शहर नोटों की ढ़ेर दिखाता है।

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