प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा।
शिक्षको बोधकश्वैव षडेते गुरवः स्मृताः॥
प्रेरणा देनेवाले, सूचना देनेवाले,
सच बतानेवाले, रास्ता दिखानेवाले,
शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले–
ये सब गुरु समान है।-
हम कलम से ही करेंगे सरफिरों के सर कलम।।
🎂Birthday 11th... read more
बड़े गोपनीय से है तंज तुम्हारे।
जब भी तुम मारती हो,
तो सारा बदन टूट जाता है।।-
फिक्र है सबको खुद को
सही साबित करने की,
जैसे ये ज़िंदगी, ज़िंदगी नहीं,
कोई इल्जाम है🙂
"अज्ञात"-
ज़िद छोड़कर के बातें जब मान लोगे मेरी,
ये हँसी तो कुछ नहीं है, मुस्कान लोगे मेरी,
यूँ सबके सामने मत तिरछी नज़र से देखो-
दिल पहले दे चुका अब, क्या जान लोगे मेरी?
~ डॉ विष्णु सक्सेना-
ये रंगों के
सौदे हैं..!
खुशबुओं से
तय कीजिएगा..!!
सभी को
होली की
हार्दिक
शुभकामनाएं-
मैं उस किताब का आखिरी पन्ना हूँ।
जिसमें मेरे न होने से कहानी पूरी ही न होगी।।📄
-
"अधर"
हैं सब रस्ते मालूम मगर फिर भी भटके हैं हम
वजह नहीं बिनवजह अधर में ही लटके हैं हम
पुष्प विपिन के हैं, प्राची की अरुणिम छटा लिए
निविड़ निशा में क्षीण रश्मियां भूरी घटा लिए
अंधियारे की आंखों में फिर क्यों खटके हैं हम
वजह नहीं बिनवजह अधर में ही लटके हैं हम
सदा सूर्य हो सत्य जहाँ हम एक नया आकाश रचें
जग के बंधन छिन्न-भिन्न कर एक नया मधुमास रचें
राजनीति ने सदा अंधेरों में पटके हैं हम
वजह नहीं बिनवजह,अधर में ही लटके हैं हम
-: अज्ञातोक्ति :--
और मैं अकेला
क्योंकि,,
भूल से गए है वो लोग हमें,
जो साथ चलने के
वादे किया करते थे ।।
-
तलाश एक सूकुं की
एक प्यारी सी गोद
मेरे सिर का
जो सहारा बन सके,
मेरे छोटे से सफ़र का किनारा बन सके।।
मन में हिमालय सी उलझन
मस्तिष्क में गहरी खाई सी परीशानी
इस बोझिल समंदर का किनारा बन सके।।-