2 OCT 2019 AT 13:25

चल रे पागल मन अब चुप हो जा
बहुत घुमा उस संध्या सुंदरी परी के लिए,
कोमलता कि उस सुंदर कली के लिए,
अंबर पथ के छांव से चले जा रहा है तु
चल अब तू कहीं गुम हो जा
चल रे पागल मन अब चुप हो जा

आंखों की भूख मिटाता था तु
देखकर उसकी एक झलक का मूल
उसकी नैनों में देख लगता था
खिला हो ज्यो़ं बिजली का फूल
कौतुहल तू मन में जगा कर
फिर तू ही क्यों मौन रहा
अब ज्वाला सी चींगार लिए मन में
खुद ही को क्यों कोस रहा
चल रे पागल मन अब चुप हो जा

- नादान परिंदा