Anand Dadhich   (Anand Dadhich © ®)
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Joined 4 July 2019


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7 FEB 2022 AT 18:19

हर ऋतु फागुन सी सजाते रहेंगे,
धेर्य धर्म की धाक दिखाते रहेंगे,
किसी ने हमें संभाला हो या नही,
हम हरदम सबको संभाले रहेंगे।
सरलता के मान बनाते रहेंगे,
प्रेम भरी दौलत दिखाते रहेंगे,
कोई हमें देखा अनदेखा करे,
हम हर हाल रिश्ता निभाते रहेंगे।
दर्द को बना फूल सजाते रहेंगे,
कर्म से यथार्थ को दर्शाते रहेंगे,
हम दोनों मन मंदिर सुंदर रखकर,
नित जिंदगी का गीत गाते रहेंगे।
पड़ाव उम्र के आजमाते रहेंगे,
एक दूजे को समझाते रहेंगे,
अपने दम जीते हैं, जीते रहेंगे,
नित जिंदगी का गीत गाते रहेंगे।

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6 FEB 2022 AT 22:53

शब्दों को सुर सरगम देने वाली,
लता की स्वर लताएं है निराली,
खामोश जो हुए करुणायुक्त कंठ,
मंद पड़ गई है भारत की लाली।

बुझी सी है अब गीत, गजल शैली,
धमार, तराना, सब लगते खाली,
खामोश जो हुए स्वर्णिम मीठे कंठ,
मंद पड़ गई है गायन की आली।

राग से नवरंग बरसाने वाली,
कला के आयाम बनाने वाली,
खामोश जो हुए सोमरसयुक्त कंठ,
मंद पड़ गई है उपवन की डाली।

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5 FEB 2022 AT 22:08

इरादे अपने खुशबू भरे,
दुनिया की परवाह से परे,
महकाएँगें इस संसार को,
दोनों अपनी सहनशक्ति धरे।

सपने है सागर से गहरे,
बेबाक कहेंगे बिना डरे,
करेंगे सौम्य इस संसार को,
दोनों अपनी भावना भरे।

कर्म-धर्म अपने, करते पहरे,
पायेंगे शिखर सारे खरे,
करेंगे सुशोभित संसार को,
हम दोनों सबका ध्यान धरे।

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5 FEB 2022 AT 15:16

माँ सरस्वती की कृपा हम सब पर बनी रहे।
बसंत_ऋतु पर एक रचना।
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जब नदियां पर्वत बिंब समाती है,
जब गुमसुम वसुधा मुस्कुराती है,
जब मानव मन डोले मतवाला,
तो मानों बसंत ऋतु आती हैं।

जब सुगंध को हवायें लाती हैं,
जब गीतों को चिड़ियाँ गाती हैं
जब मधुर मधुवन लगे मतवाला,
तो मानों बसंत ऋतु आती हैं।

जब कोमल कलियाँ इतराती है,
जब यह श्यामल शाम शर्माती है,
जब झरता झरना हो मतवाला,
तो मानों बसंत ऋतु आती हैं।

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30 JAN 2022 AT 11:57

*अंतर* - भूभाग पर पसरे अंतर को दर्शाती एक नई कविता
कहीं तन ढकने की कोशिश है,
कहीं दिखावे की नुमाइश है,
कहीं सरल से सरल मानव है,
तो कहीं बेलगाम ख़्वाहिश है।
कहीं प्यासे कंठों गुजारिश है,
कहीं बेहद बहती बारिश है,
कहीं सरल से सरल जीवन है;
और कहीं बेलगाम कशिश है।
कहीं भेदभाव भरी बंदिश है,
कहीं मनमानी चंचल जुम्बिश है,
कहीं सरल से सरल बर्ताव है,
तो कहीं अजब आजमाइश है।
कहीं डरे डरे फरमाइश है,
कहीं अवैध संकर पैदाइश है,
कहीं सरल से सरल तमन्ना है,
कहीं मस्तक झुकवाती बख्शिश है।

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29 JAN 2022 AT 8:09

जो भारत को बदनाम करते है उन्हें इतना ही कहूँगा-

क्यों मक्कारी से लथपथ काम करते हो,
क्यों भारतीयों को बदनाम करते हो,
ताउम्र खा वसुधा से, हराम करते हो,
क्यों अपनी दुर्गति का इंतजाम करते हो।
किस बात का मन में इंतकाम रखते हो,
क्यों भारत की रीत बदनाम करते हो,
बेहूदा प्रश्नों से, हैरान करते हो,
क्यों अपनी फजीहत सरेआम करते हो।
क्यों सबकुछ जानकर अनजान बनते हो,
क्यों 'वंदेमातरम्' का नुकसान करते हो,
ताउम्र पा सुसम्मान, अपमान करते हो,
क्यों अपने कर्मो काम तमाम करते हो।
मुग़लों के आतंकी हमलों से ना डरे,
अंग्रेजो के अनीति मसलो से ना डरे,
ताउम्र जीकर, कष्ट का बखान करते हो,
क्यों कहते हो की स्वराज में डरते हो।

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27 JAN 2022 AT 21:46

नोचकर डालियाँ तार लगाते हो,
तुम पंछियों का बसेरा हटाते हो,
कैसा इंसान है कैसा विज्ञान है,
सूरज को तुम आलोक दिखाते हो।

चीरकर यह धरा खम्बे बनाते हो,
सृष्टि पर अनचाहा भार बढ़ाते हो,
कैसा इंसान है कैसा विज्ञान है,
वसुधा कैसे रहे, तुम बताते हो।

खींचकर नदिया टंकी तक लाते हो,
वापसी में तुम मैल भिजवाते हो,
कैसा इंसान है कैसा विज्ञान है,
छीनकर व मलिनकर तुम सताते हो।

तोड़कर पहाड़ प्रतिमा सजाते हो,
नभ पर्वत प्रकृति हेत तुम मिटाते हो,
कैसा इंसान है कैसा विज्ञान है,
हर बार नियति से तुम टकराते हो।

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24 JAN 2022 AT 22:25

बिन बोले, बोलता संवाद है बेटियां,
ध्वनियों में, सुरीला नाद है बेटियां,
बिना बेटियों के है हर आंगन सुना,
ना भुलानेवाली, याद है बेटियां।

इस समस्त सृष्टि की, बुनियाद है बेटियां,
अनेक रिश्तों की, फरियाद है बेटियां,
बिना बेटियों के है हर आंगन सुना,
अद्भुत अविरत, आशीर्वाद है बेटियां।

रीति रिवाज का, अनुवाद है बेटियां,
अन्न कणों की शक्ति का, स्वाद है बेटियां,
बिना बेटियों के है हर आंगन सुना,
हाँ अनंत अविरल आह्लाद है बेटियां।

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23 JAN 2022 AT 7:29

राशन को तरसती लंबी कतार मिटा दी,
रूखी सूखी धरा पर जलधार बहा दी,
विरोध के नाम पर विरोध है नरेंद्र का,
मोदी युग ने सड़कों की रफ्तार बढ़ा दी।
रामलला के मंदिर की तारीख बता दी,
कश्मीर में एक समान तहजीब लगा दी,
विरोध के नाम पर विरोध है नरेंद्र का,
मोदी युग ने राष्ट्रवाद की झंकार बजा दी।
दुश्मन की आतंक हेकड़ी उतार दिखा दी,
स्वच्छता मिशन से गलिया सुधार दिखा दी,
विरोध के नाम पर विरोध है नरेंद्र का,
मोदी युग ने हिन्द धरा की हुंकार मचा दी।
भारत में अनेक करो की मार मिटा दी,
गाँव गाँव जगमग बिजली सँवार दिखा दी,
विरोध के नाम पर विरोध है नरेंद्र का,
मोदी युग ने चोरों की नींव हिला दी।
'मेक इन इंडिया' से विश्व को पुकार लगा दी,
'उज्वाला स्कीम' से धुंए की खार हटा दी,
विरोध के नाम पर विरोध है नरेंद्र का,
मोदी युग ने भविष्य की पतवार दिखा दी।

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22 JAN 2022 AT 19:47

सरलता जिसका सुंदर श्रृंगार,
उसका इक चाँद लगे हजार,
निराली है मेरी हमसफर...,
समा सादे नयनों का प्यार।

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