कसूर इन डोरियों का है ही नहीं....
है तो इस खूबसूरत पेड़ का!
जो अपनी खूबसूरती से छिपाए हुए है इन
डोरियों की अहमियत को.....-
@ana_ya1000
बहना चाहता हूँ तेरे संग ;
बिलकुल इन ठंडी,बदलती और नई लहरों की तरह;
मैं थमना नहीं चाहता ठहरी और पुरानी गरम रेत की तरह....-
भीड़ में गूंज रहीं थी आवाजें हम जीत गए
तभी बिलख रही थी उसकी मां ये कहकर कि उसकी ममता हार गई..-
एक बार गौर से देखो न!
आंखे खोलकर
इन बेजुबां परिंदों को
ये भी मुस्कुराते है खाते हुए .....
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दिन की चकाचौंद रोशनी के बाद ये रात के अंधेरे में झिलमिलाती बत्तियां और भी खूबसूरत दिखाई पड़ती है....
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जब काम करके निहारता हूं अपने हाथों को करीब से ...
तो न जाने क्यों ?
याद आते हैं तेरे घिसे नाखूनों का राज.....
याद करता हूं जब पूछता था तुझसे कि मां तेरे ये नाखून कभी बढ़ते क्यों नहीं?
तो मुस्कुराकर जवाब देती थी तू.....
काट तो लेती हूं उल्टे हाथ के!
क्योंकि सीधे के तो कपड़ों और बर्तन में ही घिस जाया करते हैं
तेरा कहा सब याद आता है...
सच तो बस इतना सा है,
तुझसे दूर यहां किस्से हजार हैं
पर हर किस्से में तू जरूर है......
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अब बेहतर शख़्स की ख्वाइश रखता नहीं हूं मैं!
क्योंकि मेरे पास बेहतरीन है......
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कहते नही वो किसी से कुछ ....
और यूं तो कुछ खास चहेते भी नही किसी के ,
बस जूझते है मुश्किलों से अकेले ही ;
न जाने लाएं है हौसला कहां से गम छिपाने का .....
यकीन नही करोगे तुम!
सच बता रहा हूं जनाब ....
जब भी जाता हूं पास उनके ....
मुस्कुराता पाता हूं उस शख्स को
तमाम मुश्किलों के बीच भी;
जाने किस मिट्टी का बना है वो,
जो टूटने का नाम नहीं लेता
काबिल ए तारीफ़ है वो शख्स
जिसकी बात कर रहा हूं मैं....
यकीं न हो ,
तो आजमा लेना घर जाकर ,
वक्त जाया न करना उन्हें ऐश-ओ-आराम के बीच ढूंढ....
जाना घर के उस कोने में,
जहां अंधेरे और सन्नाटे के बीच भी उम्मीद की झलक दिखाई दे....
और हां !
जाना बिना किसी शिकायत के!
वरना देख उनकी मुसीबतों को ,
चौखट से दबे पांव लौटने को जी चाहेगा.....
"love you papa"
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कहना आसान है ....
कर ले कुछ !
उम्मीद हैं सबको तुझसे बहुत....
कर ले न!
आसान तो है ....
सब से हो रहा ....
तुझसे क्यों नहीं ?
क्या बताऊं उन्हें मैं?
कि कुछ सपने मेरे भी बाकी हैं अभी.....
कुछ बह गए बरसात के पानी में ,
कुछ रेत की तरह फिसल गए मुट्ठी से....
फिर भी बटोरता फिरता हूं ;
उन चंद सपनों को ....
जो देखे है खुली आंखों से,
अब दोष क्यों दूं क़िस्मत को,
कुछ कसूर तो मेरा भी होगा......
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सारी आदतें जब उसकी हैं मुझे !
फिर क्यों सोचूं किसी और को मैं ?
उसकी जगह कोई और नहीं बस वही चाहिए ....
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