Anamika Shukla   (Anamika shukla "इंदू")
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Joined 10 November 2017


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Joined 10 November 2017
19 NOV 2022 AT 19:36

मुझे कहानियाँ लिखनी है,
शब्दों में फंसी हूँ।
ज़िन्दगी जीना हैं,
परेशानियों में फंसी हूँ।
मुकाम पर पहुँचने की एक उम्र होती है,
गुज़रती उम्र की हैरानियों में फंसी हूँ।

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9 SEP 2022 AT 18:43

तुम्हारे साथ बैठकर बात करने से कई ज़्यादा ख़ूबसूरत लगता है देखना अपनी कलम को काग़ज़ से गु़फ़तगू करते।

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8 SEP 2022 AT 10:47

औरत क्या शरीर से कमज़ोर होती, मन से? नहीं। औरत कमज़ोर होती है इज़्ज़त से। हाँ, इज़्ज़त से। शब्द सुना तो होगा ही? अरे, क्यों नहीं सुना होगा आख़िर होती तो सबके पास है न। पर किसी की नहीं होती। जिनकी सबसे ज़्यादा होती है, उन्हीं की सबसे कम। यह उर्दू का शब्द मेरे हिसाब से सामाजिक है। क्योंकि इसको अस्तिव समाज ने दिया, इसको शक्ति समाज ने दी।औरतों और मर्दों के हिस्से भी उसी ने बांटा। संभाल के रखने के लिए। सामाजिक दिखने के लिए इसका होना ज़रूरी है। काफ़ी नाज़ुक सी होती है। Too Fragile, औरत के हिस्से आई और भी हल्की-सी, कमज़ोर सी।
कभी किसी माँ को अपनी बेटी को भारी सामान उठाते हुए रोकते हुए नहीं देखा होगा। कि तुम कमज़ोर हो रहने दो तुमसे नहीं होगा। हाँ, यह कहते ज़रूर सुना होगा, यहां मत जाओ, वहां मत जाओ, रात में मत निकलो,लड़कों से बात मत करो इज़्ज़त चली जाएगी।
बेटों के लिए ऐसे शब्द सुनना काफ़ी Rare है न।
किसी व्यक्ति के अहंकार की हल्की सी फूंक भी एक औरत की इज़्ज़त नष्ट कर सकती है।

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14 JUN 2022 AT 19:22

तुम अमृता हो सकते थे।
मैं इमरोज़ हो सकती थी।
मगर ये दौर ही कुछ और है।

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9 JUN 2022 AT 11:05

कभी-कभी कुछ शब्द ज़ुबान पर रह जाते हैं और दिल में दर्द तो अक्सर ही मिल जाता है। मेरे हिसाब से कुछ भी लिखने के लिए यह सामग्री काफ़ी है। वैसे दर्द आजकल दिल से उतर के सर पर चढ़ गया है। शायद Emotional से Practical होने के सफ़र में हो , "More Intellectual"। समझ गया है सोचने समझने का काम ना उसका नहीं है, दिल आजकल अपना Default Business कर रहा है धड़कने का।

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3 JUN 2022 AT 22:20

Your Journey Of Anguish


They'll walk on your shoes.

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26 MAY 2022 AT 22:55

हर इंसान को अपने हिस्से आए दर्द,दुख अक्सर ज्यादा ही लगते हैं। अपने दर्द और उलझनों में फंस कर वो यह तक याद नहीं रखता है कि कुछ हिस्सा उस दर्द का किसी और के हिस्से में भी आया है। शायद उसके लिए यह सब उतना ही मुश्किल हो जितना तुम्हारे लिए। या उसकी सहन शक्ति तुमसे कम हो।
हम सब स्वार्थी हैं। तो किसी को दोष क्यों लगाऐं, किस बात का? ज़िन्दगी के कई options में हमने खुद को चुना, हर बार खुद को चुना। चाह कर भी किसी और को चुनने जैसी महानता के सोपान पर चढ़ने की झूठी कोशिश भी नहीं की।
हम सब इंसान हैं। अलग-अलग इंसान हैं। हर इंसान की इंसानियत के parameters भी अलग हैं। मैं किसी इंसान को ग़लत कैसे कह दूं, बस इसलिए कि वो मेरे जैसा नहीं है। मेरे parameters में fit
नहीं होता।

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5 JAN 2022 AT 10:19

Paid Content

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12 DEC 2021 AT 18:46

भ्रम,
ज़िन्दगी का भ्रम,
प्यार का भ्रम,
अस्तित्व का भ्रम।
कितना मजबूत...
कितना जटिल।
परतों पर परतें चढ़ी हैं।
हक़ीक़त के करीब
समय के साथ भ्रम और मजबूत हो जाता है।
इतना मजबूत की भ्रम और हक़ीक़त में कोई फर्क नहीं बचता।
सच....
ज़िन्दगी का सच,
प्यार का सच,
अस्तित्व का सच!!

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24 NOV 2021 AT 12:08

In This Era Of Practical People
Being Emotional Is Fake. .

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