Anamika Pandey   (Anamika Pandey)
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Lets pick pens instead of phones.
Joined 19 November 2016


Lets pick pens instead of phones.
Joined 19 November 2016
22 DEC 2022 AT 16:47

On a cold day, a warm coffee.
On a cold day, a warm hug.
Out in the open, a big yellow door,
Inside the home, a wide range of chores.
Great length of conversations with some cookies,
A big house and so much to look for.
Just a big smile and a lot of what ifs.

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18 OCT 2022 AT 19:47

तुम्हारी महक कभी हाथो से छूटी कभी बालो में अटकी,
मैने गौर फ़रमाया तो जाना तुम कभी आँखों में तो कभी होटों पर भटकी,
यूँ ही कभी बातो में नहीं तो कभी यादों में दस्तक दी तुमने,
कभी पास आके और कभी दूर से भी आवाज़ दी तुमने,
मुश्किल दौर में भी तुम्हारा सहारा होना काफी लगा,
क्या ऐसा इश्क़ होना तुम्हें भी काफी लगा?

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11 MAY 2022 AT 0:27

मुझे सब मिला, लेकिन मैं खुदसे शायद कुछ कम मिला ।
सफ़र पूरा ही था शायद, मंजिल तक पहुंचना मुझे मुक्कमल न लगा ।
वो मिलने आया तो सबके साथ ही था, उसके आने पर भी तन्हा ही लगा ।
जज़बातो को मैंने तवज्जों न दी शायद, फिर भी उसका न होना खलने क्यूं लगा ?
जिंदगी भी पूरी ही थी, शायद मुझे ही सबकुछ कम सा लगा ।

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19 MAR 2022 AT 20:31

With a pinch of salt and sweetness of a cake, I am taken aback to the places where my existence is not for the name sake.
I climb up, I walk down, nothing my mate I want to take a look around the beautiful town.
I smell clothes and wipe the floor, I want to make sure it doesn't lure.
I look back and I want to stay, at the same time I also want to run away!
For the time, that take me to the places. I just sit and wander if it's meant for traces?
To every place I go, a feeling is attached. How come all the drama is around to get detached.

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14 JAN 2022 AT 18:52

ख़ाक से आये है, ख़ाक में मिल जायेंगे, इस मिट्टी के शरीर से केवल चंद पल चुरा पायेंगे।
वो वक्त याद है जब तुमने खोली थी आंखे और मां रोते हुए हँस दी थी, या फिर याद है वो स्कूल के दिन जहां जाने के लिए मरती थी नानी रात दिन ?
हंसी ठिठोली में दिन निकल जाता था, वक्त मानो रेत सा था हाथों से फिसल जाता था।
और वो प्यार जिसमे जज़बातो का सैलाब था, तुम्हारा इश्क दूर होकर भी तुम्हारे पास था।
फिर तुमने काम करते सालो बिताये, जिन पलो से शुरू किया था सफ़र उन्हे फिर दोहराएं, फिर रोये, फिर हंसे, फिर वही स्कूल की बाते, तुम अब उनका हिस्सा नहीं थे, फिर भी तुमने वो अपने लल्ला संग बांटे।
आखिर आज अंत आया है, सभी पलो को अपने साथ लाया है, रोता क्यों है मुसाफ़िर, शायद इसी कारवां को तो लोगो ने जिंदगी बुलाया है।

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11 NOV 2021 AT 0:16

हमने खुद को इस हद तक परेशान कर दिया, ठहरे थे जिस घर में उसी को जला कर राख कर दिया ।
मैने सोचा था इतिहास लिखेंगी हमारी कहानी, तुमने तो मुझको ही बेज़ार कर दिया ।
किस हद तक गिरी होगी तुम्हारी औकात, मैने जहां तुम्हारा नाम देखा उसे नजरंदाज कर दिया ।
क्यों आए हो अब लौट कर, जिसको तुमने छोड़ा था क्या उसी ने तुम्हारा जीना नासाज कर दिया?
जाओ और वापस न आना, दिल जलता है अब तुम्हारा चेहरा देखकर, बनाने चले थे ताजमहल और तुमने उसी इरादे को नापाक कर दिया ।
वक्त वक्त की बात है हम जहां खड़े थे कल, आज उसी दरवाज़े पर किस्मत ने तुम्हें लाकर खड़ा कर दिया ।

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8 SEP 2021 AT 0:38

एक थकान सी है, इन आंखो मे अब खुशी ने रहना छोड़ दिया है ।
कुछ परेशानी भी है, साहस ने भी मानो दम तोड़ सा दिया है ।
मैं रोऊ भी तो कहा, घर के हर कोने ने साथ छोड़ ही दिया है ।
मैं कहां जाऊं ? सफ़र ने भी मुझसे समझो सिर्फ दगा ही किया है ।

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17 MAY 2021 AT 15:17

मैं जब जाऊं तो ऐलान कर देना, मेरी मां को आखिरी सलाम कर देना।
तू कितना रोयेगा मेरे जाने पर?
अभी जिंदा हूं, तो ज़ाहिर सरेआम कर देना।
दो पल रोज़ याद कर लेना, हर साल उस महीने का इंतजार न करना,
अगर ऐसी हस्ती हम ना बना पाये, तो हमारे जीवन को बेकार करार कर देना।

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27 APR 2021 AT 20:18

एक जाम उस शाम के नाम

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27 DEC 2020 AT 16:46

आज वक्त कुछ और है, तन्हाई कहीं दूर है
मैने आइने से पूछा ये कौन है? तो आवाज़ आयी ये कोई और है।
गमो को धुएं में उड़ाया, खुद को शराब में डुबाया फिर पूछा ये कौन है? तो आवाज़ आई कोई और है।
मन से प्यार अपनाया, इज़्ज़त करने से नहीं कतराया, फिर पूछा ये कौन है ? तो आवाज़ आई कोई और है।
थक गया, घर आया खुद को बैठाया और बस यही समझाया मत पूछ की तू कौन है, ये मान की तू कोई और है।

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