Anamika Chauhan   (अनु 'अन्नम' ✒️)
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Joined 11 October 2020


Joined 11 October 2020
8 HOURS AGO

वक्त कैसा भी हो यह काट ही लेते हैं,
तिरस्कार के बदले खुशियाॅं ही देते हैं।

कुपित इस बात से नहीं ये मज़दूर हैं,
कुछ भी कर देश प्रति इम्दाद होते हैं।

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8 HOURS AGO

ज़िन्दगी के साथी ज़िन्दगी की रौनक़ होते,
कि लुटी पिटी ज़िन्दगी की ये ज़ीनत होते।

जज़्बातों में जज़्बात ये अलहदा बिल्कुल ही,
शूलों संग जैसे फ़ूल होते बिल्कुल ऐसे होते।

कदंब की छाॅंव से यह देते, राहत-ओ-सुकून,
बरसात में सौंधी महक ऐसी कुछ जात होते।

तकल्लुफों जैसी, इनमें होती नहीं कोई बात,
बिना पढ़ा-लिखा पढ़ले ये ऐसी किताब होते।

ज़िन्दगी जीने को कम पड़ जाती इनके आगे,
खुशियों के'अन्नम' सपथपत्र यह प्रमाण होते।

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10 HOURS AGO

ज़िन्दगी कितनी दूर जायेगी
पड़ेगी एक दिन ज़माने की नज़र
यह झाल सूख जायेगी।

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11 HOURS AGO

कि- होगी बेशक रब की मेहरबानी होगी,
पर लिखनी तुझको अपनी ज़ुबानी होगी।

देगा तुझको वह पीछे से हौसला भर-पूर,
आगे बढ़के हिम्मत तुझे ही जुटानी होगी।

खिला सकता वह सहरा में फ़ूल याद रख,
ज़िन्दगी पहेली यह तुझे ही बुझानी होगी।

होश रहने तक देगा यह सहारा बात मानो,
बाहें चढ़ाए ज़िंदगी तुझे ही संवारनी होगी।

वह दे सकता है नाम,यश,ख्याति हर कुछ,
सफलता की सीढ़ी ये तुम्हें ही चढ़नी होगी।

है वह महज़ एक माध्यम मात्र कहे "अन्नम"
तमद्दुन की ज़मीं वो तुझे ही तलाशनी होगी।
_अनु "अन्नम" ✒️

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30 APR AT 22:34

अतीत को मनुज, रोने बैठा,
दिनचर्या को ही खोने बैठा।

पक्ष उसके अपना नहीं मत,
मूरख पिछला संजोने बैठा।

अति कर पर इतनी ना कर,
आक ही नादाँ ओंधाने बैठा।

निकल याद से तो दे दिखाई,
अनीत की जा कोख में बैठा।

धृतराष्ट्र ना बन कहे "अन्नम"
तू देश का कल ? सोच बैठा।

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30 APR AT 20:39

उम्मीद और यक़ीन गर एक शय हो जाते,
ज़िन्दगी के और भी, पक्के इरादे हो जाते।

जैसा होता अंदर इॅंसान वैसा देता दिखाई,
भ्रम कुछेक ज़िन्दगी के, यूॅंही दूर हो जाते।

मीठे लफ़्ज़ों, ज़ुबाॅं का होता एक ही स्वाद,
झगड़े झांसे कितने भी रफा-दफा हो जाते।

शुभ-अशुभ घड़ी नहीं, पक्की होती ज़ुबान,
न जाने कितने ही मसलों के हल हो जाते।

इन्सानी भाव बना रहे भीतर कहती 'अन्नम'
फ़िर साधारण से नर, असाधारण हो जाते।
_अनु "अन्नम" ✒️

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30 APR AT 14:39

दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल,
कहीं से न अधपकी रहे।
उसके नाम की रोटियाॅं,
पलकों पर, सिंकती रहें।

मेरा दिल टूटा सो टूटा,
उसका बसा, बसा रहे।
नहीं राब्ता कोई बेशक,
दर्द यह उसके सवा रहें।

गिरे अश्रु होगी बदनामी,
ऐ जाॅं तू चढ़ती बलि रहे।
कोई न सगा इस जहाॅं में,
बर्बाद ज़िंदगी ये याद रहे।

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29 APR AT 22:21

तू याद आए और ये दिल तबाह हो,
कि- मैं मेरे ख़्वाब यूॅं नूर-अफ़्शाॅं हों।

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29 APR AT 21:13

कि- दर्द का सागर समेट कर चलती हूॅं,
मैं कोई चन्दन नहीं फ़िर भी महकती हूॅं।

ना बड़ा नाम ना ही बड़ा काम फ़िर भी,
सच है ये ज़िंदगी से इत्तेफ़ाक रखती हूॅं।

डूबोयेगा क्या कोई दर्द पीके अश्क़ जिए,
छोटी-छोटी खुशियों में 'संसार' भरती हूॅं।

ज़िन्दगी से हार कर भी, जाती हूॅं मैं जीत,
दर्द-ए-निहाँ' लोगों के अपने समझती हूॅं।

साॅंसों की डोर टूट सकती यह 'अन्नम' नहीं,
अहं से नहीं 'स्वयं' के अनुभव से कहती हूॅं।

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29 APR AT 20:26

रंग जिन्दगी के बदरंग हो गए,
वो रंगीन मिजाज हम बेरंग हो गए।
रोज़ रोज़ की ये चोट अच्छी नहीं,
वो सत्यव्रत सही हम इंकलाबी हो गए।

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