चाॅंद से आरज़ू है नहीं कोई दरख़ास्त,
जो सबका हमें वो कतई मंजूर नहीं।-
कि- हम अकेले अच्छे हैं, थे और रहेंगे,
हमें करना भावों के व्यापार नहीं आता।-
ख़ामोशी नहीं इसे इश्क़ की ज़ुबां कहिए,
जो पल-पल तुम्हें बेसब्र किया करती है।-
हक़ीक़त बन सको तो बात करो,
यूॅं ही नहीं खड़ी मुश्किलात करो।
ख़्यालों की बारिश पर यक़ीं नहीं,
बे-मौसम ना कोई बरसात करो।
ऑंधी, तुफ़ान सब होगा बर्दाश्त,
पहले इन मुद्दों पर भी बात करो।
हफ्ते दस दिन की ये रवानी नही,
बीच राह ना कोई शुरूआत करो।
आ कभी लेकर यादों की बारात,
जाने-जानाॅं थोड़ी तो हिम्मत करो।
दिल को आए यक़ीन ऐ दिलबर,
कि कुछ तो ऐसी खुराफ़ात करो।
ख़ुशी बन बरस जाए कहे 'अन्नम'
टूटे दिल की पहले मरम्मत करो।
_अनु "अन्नम"
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प्रेम की अगर कोई भाषा है तो वह है मौन,
दिल चीर भी देती है दिल छीन भी लेती है।-
आबरू अपनी हो या अपनों की सबका ख़्याल हो,
नहीं अपनाते वृक्ष उन फलों को जो भूगत हो गए।
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हम दश्त-ए-तसव्वुर को आपके ज़िन्दगी बताएंगे,
आप बस ख़्वाब-ओ-ख़याल में आते-जाते रहना।-