उम्मीद और यक़ीन गर एक शय हो जाते,
ज़िन्दगी के और भी, पक्के इरादे हो जाते।
जैसा होता अंदर इॅंसान वैसा देता दिखाई,
भ्रम कुछेक ज़िन्दगी के, यूॅंही दूर हो जाते।
मीठे लफ़्ज़ों, ज़ुबाॅं का होता एक ही स्वाद,
झगड़े झांसे कितने भी रफा-दफा हो जाते।
शुभ-अशुभ घड़ी नहीं, पक्की होती ज़ुबान,
न जाने कितने ही मसलों के हल हो जाते।
इन्सानी भाव बना रहे भीतर कहती 'अन्नम'
फ़िर साधारण से नर, असाधारण हो जाते।
_अनु "अन्नम" ✒️
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