मोम सा जलकर पिघलना
मंजुर है मुझे
बस्स.....
तेरे घरका अंधेरा मिट जाये
यही दिले तमन्ना है ।।
रोशनीसे भरे तेरे घर मै
मै कुछ इस तरहा से रहुँ
जब भी अंधेरा हो
मै झटसे मिल पाऊँ ।।
यही तो दोस्ती है मेरे दोस्त....
3/8/2024
©®गौटमी सिद्धार्थ-
रात है गहरी ,
अंधेरा है बडा घना
होगी सुबहा नयी
उम्मीद का दीया जलाये रखना ।
(1/8/2024)-
कुछ ना कहो
मौन ही रहो
सुनो अनकहे शब्दोंकी झनकार
सुनों साँसों का संगीत
समझो नैनो की भाषा
सुनो धडकनोंकी ताल
सुनो मनमे गुनगुनाया गान
चुप...चुप...चुप....
कहा ना...
कुछ ना कहो...मौन ही रहो...
©®गौतमी सिद्धार्थ (16/10/2023)
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भूलाया नही जाता उन सपनोंको
जो हमारी नयी पहचान बनाये...
जो हमारा अस्तित्व बनाये...
जो हमे महत्वपुर्ण बनाये...
जो हमारा आत्मविश्र्वास बढाये....
करे कडी मेहनत
पुरे करने सपने
क्युकी भुलाया नही जाता मंजिल को....
©®गौतमी सिद्धार्थ (16/10/2023)-
जहाँ आख़री मुलाकात हुई थी हमारी...
इश्क मै भीगता गुलाब
उसी मोड़ छोड आई हुँ....
धडकता दिल भी रुका है वही पर
जहा प्यारभरा पैगाम छोड़ आई हुँ...
राह मै दिखेगी प्यारीसी उगी जुही
आँखोंके इत्र से सिंची
उसकी बेल वही छोड आई हुँ...
बटोर लेना उन फुलोंको नज़ाकतसे
मे अपनी मुस्कान उसी संग छोड आई हुॅ...
©®गौतमी सिद्धार्थ (16/10/2023)
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या विचारांच्या डोहात
भरकटत चाललेल्या तारुला
सकारात्मकतेचा सुकाणु भेटेल ना?
हो ...हो...जरुर ...
फक्त अशी चाळण शोध ज्यातुन
नकारात्मकता गळुन पडेल....
©®गौतमी सिद्धार्थ
(1/10/2023)
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मायुस ना हो दिल मेरे
क्युँ मचाई है ये हलचल..
शांत हो जा
इस नदी की तरहा...
तब देख पायेगा
स्पष्ट रुपसे
अपनाही प्रतिबिंब.....
स्वच्छ ,निर्मल ,अनघ.....
©®गौतमी सिद्धार्थ
(1/10/2023)-
शामलाक्षी
कर्णफुल
पद्मपर्णपाणि
कनकवस्त्रा
रजतश्रृंखला
श्रृंगार इति संपुर्ण....।।
©®गौतमी सिद्धार्थ
(1/10/2023)
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