सोचा था कि कुछ नया लिखने के दिन हैं ..
लेकिन कलम उठाते ही कुछ पुरानी यादों ने हिरासत में ले लिया...।।-
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निगाहें रुकती ही कहां है तुझ पे से,,
सोचूं ज़रा सा तुझे तो शाम हो जाती है,,।।-
ख्वाहिश तो कुछ खास नहीं है या रब मेरी,,
बस इल्तिज़ा है की कोई भी तेरा बंदा कुफ्र पर न मरे,,!!— % &-
कहानी में ज़िक्र नहीं तेरा अब ए दिल_ए_जान,,
मान जा यूं न ख़ुद को अब और सता,,।।
रूह का ताल्लुक़ ज़रूर होगा तेरा मुझसे,,
पर मन मान जा यूं न ख़ुद को अब और सता,,।।
खास रहते होंगे और भी लोग उसके आशियाने में,,
पर वक्त को याद कर यूं न खुद को सता,,।।
शाम ढलती हुई खुशी लाती थी जिसकी मुलाकातें,,
अब रातों की तन्हाइयों में यूं न खुद को सता,,।।
हाथों में हाथ रखने से जिसके भूल जाते थे हम सारी दुनियां,,
खुद को मजबूत कह कर दिल को और यूं न सता,,।।
माना की वक्त बीत जायेगा पर ए दिल भूलेगा नहीं तू,,
याद करके बेवजह अब और यूं न खुद को और सता,,,।।।।
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बातों से ही शुरआत हुई होती है दोस्ती की,,
वरना मुहब्बत तो ख़ामोश रह कर भी की जाती है..!
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एक तरफा ही सही कुछ एहसास तो है,,
इसी बहाने तेरी पुरानी बातें हमारे पास तो हैं।।
(हैप्पी बर्थडे तीखी मिर्ची)-
कहानी यादों की भी कुछ अलग सी होती है,,
तकलीफ दिल में,,
खामोशी जुबान पे,,
पानी आंखो में,,
और
तूफान अंदर उठा हुआ होता है,,,॥-
अफसाना लिखें या लिखूं ख़ामोशी साहिल की,
हर दफा अहसास लफ्ज़ बयां करें ये आसान अब नहीं...!!-