सुबह की पहली रोशनी है!
रात के चाँद का नूर है!
वों मुझमें है साँसों जैसी,
मगर हक़ीक़त में दूर है!
मेरी हर नज़्म का मतला है!
शायर से ज़्यादा मशहूर है!
गज़ल के अश'आर के जैसी,
हर किसी पे उसका सुरुर है!
चाहत के इल्म से अंजान है!
वों मन में बसा एक फितूर है!
उसके लिए ख़ार हों भी जाए,
ये फैसला भी हमें अब मंजूर है!
- Chirag - अन "Jaaana"