कुछ अलग सा खिंचाव था उन रास्तों में,
अपनों से कुछ दूर, अपना सा लेती थीं.
अजीब सा ठहराव था उन रास्तों में,
बेचैनी में भी थम जाने की, वो हवा सा देती थीं.
लेकर चल साथ, खु़द के खालीपन को, फिर उन रास्तों में
ज़ज्बातों के परे, मैं कुछ बदल सा जाती थी.
कुछ अलग सा एहसास था उन रास्तों में॥
हरबार हो रूबरू उन यादों सें, हां कुछ पल ही सही, निख़र सा जाती थी
कुछ अलग ही बात थी उन रास्तों की,
आंखे भी नम होती थी और दिल ही दिल मुस्कुरा भी जाती थी॥
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