हार जाती हूं मैं खुद से ही बार-बार,
क्यों नहीं बना पाती मैं खुद को....
दूसरों की तरह हर बार,
दुनिया में भी रहकर खुद के लिए जीना..
क्यों नहीं आता मुझे खुद में ही रहना,
क्यों दूसरों के दुख को अपना समझ लेती हूं....
और क्यों जरा जरा सी बात पर खुलकर हंस लेती हूं, शायद मेरी जिंदगी का यही है फसाना ...
दिल में चाहे हो कितना भी दर्द पर चेहरे से है मुस्कुराना !!!
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