Amrit Raj   (© अमृत)
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Author.. poet.. lyricist.. script writer..
Joined 6 February 2017


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27 FEB 2022 AT 23:22

कभी कभी सोचता हूँ
सब छोड़ कर लौट जाऊँ
पर लौट कर जाऊँगा कहाँ
लौटते वो है जिनके घर होते है
घर जला कर आया हूँ


कभी कभी दिल करता है
रो लूँ जी भर के
पर रोते वो है जिनके पास कंधा होता है
सारे कंधे दफ़ना कर आया हूँ

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27 FEB 2022 AT 23:15

खुद से कहने में देर कर दी
मैंने चुप रहने में देर कर दी

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27 FEB 2022 AT 22:55

ख़ाली बोतलों सा सड़कों पर न फिरा करो
जाने कब दस्तक हो,शाम घर पर रहा करो

ऐतराज़ इससे नहीं कि पूरा क्यों नहीं किया
वो बातें कहा भी न करो ,जो न किया करो

अमृत

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23 FEB 2022 AT 4:15

मंज़िल सबके हिस्से में आती नहीं
कुछ सफ़र लौटने पर ख़त्म होते हैं

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23 MAY 2020 AT 12:05

हर लम्हा बदलती ज़िंदगी में, कुछ लम्हे नही बदलते कभी
होता है इक शख्स ,जिससे आखिरी बार नही मिलते कभी

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13 JUL 2021 AT 0:20

हुनर सीखा था तूफान से कश्ती निकालने का
बात तब बदल गयी, जब कश्ती में तूफ़ाँ निकला

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14 SEP 2020 AT 19:03

घूम कर पूरी दुनिया इक रोज़ फिर यहीं आना होगा
मुझसे दूर जाने के लिए, तुम्हे ख़ुद से दूर जाना होगा

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12 SEP 2020 AT 2:30

कड़ी धूप में
पसीने से तरबतर
लगातार वो चाक घुमाता जाता था
छोटी सुराही की गर्दन
आकार लेती जा रही थी
चाक की रफ़्तार बढ़ती गयी
उँगलियाँ घूमती रहीं
सुराही बनती गयी
घंटों की मेहनत के बाद
जो सुराही को सुखाने को उतारा
उस बारह इंच लंबी सुराही की पेंदी में
एक आधे सेंटीमीटर का छेद रह गया
उदासी, छलनी से छलते आटे की तरह
उसकी आँखों से झरती रही
छेद था फिर भी उसे तोड़ा नहीं
मेहनत की ताबीर थी वो
कोने में पड़ी रही

कुम्हार हिम्मतवाला था फिर जुट गया सुराही बनाने में।

मैं अब रिश्ते नहीं बनाता।

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14 APR 2020 AT 14:32

मुझसे आगे बढ़कर भी वो मेरे पीछे पीछे आता है
चला हीं गया है, तो फिर चला क्यो नही जाता है

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27 MAR 2020 AT 17:42

रात की गठरी लादे,
दिन भर की दिहाड़ी के बाद
नींद का मजदूर जिस दरवाजे देता है दस्तक
उस तैरते दस्तक के उस पार
डूबते सूरज की बिंदी माथे पर लिए
मैंने देखा तुम्हें
जब हल्के हाथों से
आसमान का पल्लू घुमाकर कर कंधे पर डाला था तुमने..

तारें बटन से चकमकाते हैं

लगता है मानो किसी ने तुम्हारी साड़ी में मेरे कुर्ते को सिल दिया है...।।।

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