कभी कभी सोचता हूँ
सब छोड़ कर लौट जाऊँ
पर लौट कर जाऊँगा कहाँ
लौटते वो है जिनके घर होते है
घर जला कर आया हूँ
कभी कभी दिल करता है
रो लूँ जी भर के
पर रोते वो है जिनके पास कंधा होता है
सारे कंधे दफ़ना कर आया हूँ-
ख़ाली बोतलों सा सड़कों पर न फिरा करो
जाने कब दस्तक हो,शाम घर पर रहा करो
ऐतराज़ इससे नहीं कि पूरा क्यों नहीं किया
वो बातें कहा भी न करो ,जो न किया करो
अमृत-
हर लम्हा बदलती ज़िंदगी में, कुछ लम्हे नही बदलते कभी
होता है इक शख्स ,जिससे आखिरी बार नही मिलते कभी-
हुनर सीखा था तूफान से कश्ती निकालने का
बात तब बदल गयी, जब कश्ती में तूफ़ाँ निकला-
घूम कर पूरी दुनिया इक रोज़ फिर यहीं आना होगा
मुझसे दूर जाने के लिए, तुम्हे ख़ुद से दूर जाना होगा
-
कड़ी धूप में
पसीने से तरबतर
लगातार वो चाक घुमाता जाता था
छोटी सुराही की गर्दन
आकार लेती जा रही थी
चाक की रफ़्तार बढ़ती गयी
उँगलियाँ घूमती रहीं
सुराही बनती गयी
घंटों की मेहनत के बाद
जो सुराही को सुखाने को उतारा
उस बारह इंच लंबी सुराही की पेंदी में
एक आधे सेंटीमीटर का छेद रह गया
उदासी, छलनी से छलते आटे की तरह
उसकी आँखों से झरती रही
छेद था फिर भी उसे तोड़ा नहीं
मेहनत की ताबीर थी वो
कोने में पड़ी रही
कुम्हार हिम्मतवाला था फिर जुट गया सुराही बनाने में।
मैं अब रिश्ते नहीं बनाता।
-
मुझसे आगे बढ़कर भी वो मेरे पीछे पीछे आता है
चला हीं गया है, तो फिर चला क्यो नही जाता है-
रात की गठरी लादे,
दिन भर की दिहाड़ी के बाद
नींद का मजदूर जिस दरवाजे देता है दस्तक
उस तैरते दस्तक के उस पार
डूबते सूरज की बिंदी माथे पर लिए
मैंने देखा तुम्हें
जब हल्के हाथों से
आसमान का पल्लू घुमाकर कर कंधे पर डाला था तुमने..
तारें बटन से चकमकाते हैं
लगता है मानो किसी ने तुम्हारी साड़ी में मेरे कुर्ते को सिल दिया है...।।।-