कम्पोजीशन
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किराये पर कमरा लेना
किसी इम्तिहान से कम नही
जहाँ सभी पेपर में गलत उत्तर लिखने पर भी
डिंस्टिंक्शन दिया गया
और जिस पेपर में सही उत्तर लिखा हमनें
उसमें ही किया गया फेल
ये पेपर कम्पोजीशन का पेपर था
गांव के दक्षिण में बसा हमारा घर भी
मुझे चीख़कर यही कह रहा तबसे
ये कम्पोजीशन का पेपर हमारे पूर्वज भी
ना पास कर पाये थे !
या यूं कहें कि उन्हें भी फेल किया गया था
घर किराये का लेना हो
या फ़िर अपना मनपसंद बनाना
चाहे शहर ज्ञान की धरती हो
या फ़िर मोक्ष की भूमि
कम्पोजीशन पास करना अनिवार्य है ।
@अमृत
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ये जानकर भी मैं तुझे याद करता हूँ कि
मुअत्तली हो गया मेरा नाम तेरे मोहब्बत
की रजिस्टर से,
पर उफ़्ताद ये है कि तू बिछड़कर
अब भी मेरे साथ है.
मुझसे जब मिलते हैं तेरे-मेरे मोहब्बत
के चश्मदीद तो पूछते हैं कि
शायरी में इतना दर्द है,
तो फ़िर चेहरे पर मुस्कुराहट का क्या राज है.
मैं उनसे कहता हूँ कि ये दर्द
तो उनके मोहब्बत भरे फुरकत की ईजाद है.
और मुस्कुराहट यह जानकर है कि
मेरे हिज्र के बाद भी
उनका घर आबाद है.-
कौन कहता है कि मेरा महबूब शायराना नही,
ये उसी ने कहा होगा, जिसने उसे जाना नही ।
वो कोई और होंगे जो ख़्वाब के बदले
समझौता करने को तैयार होंगे,
यदि मेरे बारे में ऐसा ख़्याल है तो फ़िर
तुमने ठीक से हमें पहचाना नही ।
तेरा हाल तो किसी मुल्क के वज़ीर-ऐ-आज़म
से भी बदतर है,
जो जंग का ऐलान भी कर दिया हो और
जंग-ऐ-मैदान में जिसे आना भी नही ।
मुझे तेरी अक्लमंदी का पूरा अंदाज़ा है ,
तुम रेगिस्तान में चमकते हुए रेत को पानी
ना समझो, इतना भी तुम सयाना नही ।
हमसे जो करना है चाहे दोस्ती हो या
दुश्मनी, खुलकर करो,
वरना हमें तेरी दोस्ती तो दूर,
दुश्मनी भी मुझे निभाना नही।
और जब तुझे इजितराब होने लगे
मेरे सवालों के जवाब देने की,
तो फ़िर मैं भी अमृत हूँ, तुझे वही मिलूँगा
और जरूर मिलूँगा
मैं कोई गुज़रा हुआ ज़माना नही ।-
तू कहे तो तुझसे ख़्वाबों के बाहर भी मिल लूँ,
मसला ये है कि हाथ मिलाऊँगा तो
हाथ कपकपाएँगे.
अधरों का भी यही हाल होगा तुझसे मिलने पर,
कहना बहुत कुछ चाहेंगें पर
सिले के सिले रह जायेंगें.
ख़्वाबों में तेरी बाहों में सिमटकर भले
सो लेता हूँ मैं,
मुख़ातिब होकर तू जो गले लगा ले तो
हम हृदयगति से मर जायेंगें.
पेड़ काटते वक़्त कोई लकड़हारा नही सोचता,
कि इस दरख़्त में रहने वाले
परिंदें कहाँ जायेंगें.
तू हकीकत न बन, ख़्वाब ही रह पर
मेरी हमिय्यत का ख़्याल रख,
अबकी बार तुझसे जो बिछड़े,
फ़िर हम कहाँ के रह जायेंगे.
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मुद्दत बाद मिला है कोई इस ज़माने में,
जो साथ निभा सके ता-दम-ए-हयात.
उसके बारे में मैं लिख दूँ कितनी भी बात,
फ़िर भी छूट जाती है दुनिया भर की बात.
मुझसे उसके पहले आलिंगन के बारे ना पूछो,
मुझे इतनी क़ुव्वत नही कि सुना पाऊं वो हिकात.
बस इतना जानो कि ऐसी थी पहली मुलाकात,
कि उसके सामने क्या हयात,
क्या वफ़ात, क्या कायनात.
उसका साथ है ऐसे कि मोहब्बत से
लबालब कोई हयात,
उसके बग़ैर जो होगी,
वो हयात भी होगी बे-हयात.
किसी ने ग़र कभी लिखा भी
तेरी सबानेह-हयात,
तो तुझे छोड़कर कौन पहचानेगा अमृत
कि ये है तेरी हयात या उसकी हयात या
फ़िर अधूरे ख्वाबों से सजी पूरी कायनात.
: अमृत
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जब तुमसे मुत्तासिर ना था तो लगता था,
अब कुछ भी नही बचा है दुनिया में खोने को.
अब जब तुमसे मुत्तासिर हो चुका हूँ,
लगता है कुछ भी नही बचा है दुनिया में पाने को.-
कौन कहता है कि चाँद को चाँद होने पर गुरुर है,
वो तो हर किसी का है जिसे इश्क़ का सुरूर है.
नूर तो बहुत हैं इस ज़माने में पर
चाँद का नूर ही इश्क़ का नूर है.
और यदि तुझमें मोहब्बत की चराग़ है
तो वो खिड़की से भी बातें करने आयेगा,
वरना काफिरों के लिए चाँद कल
भी दूर था और अब भी दूर है.
अभी इस वक़्त जब तन्हाई की आगोश में
किसी का जिस्मों-जान तप रहा था तभी
चाँद उसकी खिड़की से घुसकर नंगे पांव
उसके बिछावन पर जाकर लेट जाता है
और वहाँ से शुरू होता है दो प्रेमियों का संवाद.
एक प्रेमी तो चाँद है और दूजा चाँद का प्रेमी है.
संवाद अमृतमय है इसलिये अनन्त है !-
बस एक खूबसूरत सा ख़ाब है आँखों में,
जो मुझे चैन से रात भर सोने नही देता.
मुस्कुराने पर बंदिशें तो एक अलग मसला है,
तकलुफ़्फ़ ये है कि जी भर कर रोने भी नही देता.
एक मैं हूँ कि मैं किसी का होना नही चाहता,
और वो शख़्स भी मुझे किसी का होने नही देता.
उसने अपनी ज़िंदगी का इमरोज़ चुन रखा है,
पर मैं हैराँ हूँ कि वो मुझे साहिर क्यों नही होने देता.
ख़ाबों को कब्र में दफ़न करके तू खुद सोच राज,
तू उसे किसी और का पूर्णतः होने क्यों नही देता.
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जब तुम थे तो केवल तुम ही थे,
अब तुम नही हो, फ़िर भी तुम ही हो.
अब आसमाँ भले हो गया है कोई और तेरा,
पर आज भी तुम मेरी ही ज़मीं हो.
कल तुम मेरी हकीकत थी,
आज तू ख़्वाब है और ख़्वाब भी हसीं हो.
तेरी दीद के दीदार को तरसती निगाहें,
हम तक पहुँच जाती हैं अब भी,
उन्हें लगता है कि तुम कहीं हो तो यहीं हो.
इश्क़ में चूर यह दिल जब कल रात,
मेरी हाथों को घण्टों कैनवास पर रखकर कुछ ना उकेर पाया,
तब जाकर मालूम हुआ कि तुम कहीं नही हो.
शुक्रिया फ़िर भी अदा करता हूँ तेरी यादों को,
जिसने मेरी गलतफहमियां दूर की,
कि तुम यही हों, यही कहीं हो।-
कौन कहता है कि मेरा महबूब शायराना नही,
ये उसी ने कहा होगा, जिसने उसे जाना नही.
वो कोई और होंगे जो ख़्वाब के बदले
समझौता करने को तैयार होंगे,
यदि मेरे बारे में ऐसा ख़्याल है तो फ़िर
तुमने ठीक से हमें पहचाना नही.
तेरा हाल तो मेरे मुल्क के
वज़ीर-ऐ-आज़म से भी बदतर है,
जो जंग का ऐलान भी कर दिया हो
और जंग-ऐ-मैदान में जिसे आना भी नही.
मुझे तेरी अक्लमंदी का पूरा अंदाज़ा है,
तुम रेगिस्तान में चमकते हुए रेत को
पानी ना समझो, इतना भी तुम सयाना नही.
हमसे जो करना है चाहे दोस्ती हो या दुश्मनी,
खुलकर करो, वरना हमें तेरी दोस्ती तो दूर,
दुश्मनी भी मुझे निभाना नही.
और जब तुझे होने लगे इज़्तिराब
मेरे सवालों के जवाब देने की,
तो फ़िर मैं अमृत हूँ, तुझे वही मिलूँगा
और जरूर मिलूँगा,
मैं कोई गुज़रा हुआ ज़माना नही.-