निर्भया - अमृत चौधरी
अब शर्म करो, अब शर्म करो , अब शर्म करो
आखिर कब तक तुम उनको बचाओ गे।
साफ साफ कैह दो ना अगर तुम, नहीं उन्हें फांसी दे पाओगे गे।
तारीख पे तारीख देके, हम में क्यों तुम विश्वाश जगाते हो।
ना होगा अपराध छमा, झूठी तसल्ली दिलाते हो।
साफ साफ दिखता है साफ साफ दिखता है की, कानून ये पूरी अंधी है।
जिसने बार बार गुनहगारो के फांसी पर लगा दि पाबंदी है।
जिसने ये अपराध किया उस एक दरिंदे को है छोड दिया।
अरे रैहम उस पर किस बात की,जिसने मुझ पर बिल्कुल नहीं है रैहम किया।
तूने ये सब कर के , गुनहेगारों का मन बढ़ाया है।
इस देश कि बेटियों का सर, तूने शर्म से झुकाया है।
मेरी बैहनो सुनो ,मेरी बैहनो सुनो, मेरी बैहनो सुनो
इन सब से कुछ नहीं होगा, अब तुम सब ही मिल कर परहार करो।
धर के रूप मा चंडी का, महिसा सुर का संहार करो।
मेरा विश्वास इस कानून पर से, तुम सब ने ही उठाया है।
एक मां की सूखी हुई आंसू देख के, भी तुम्हें बिल्कुल शर्म नहीं आया है।
अब शर्म आ रही है,अब शर्म आ रही है,अब शर्म
आ रही है ये सोच के, हम किस देश के निवासी है।
जहा येसी दरिंदगी पे भी, नहीं मिलती जल्दी फांसी है।
अरे बंद करो अरे
बंद करो राजनिती, दुनिया है सब कुछ देख रही।
थू थू कर के तुम सब के, मुंह पर है दुनिया थूक फेक रही।
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