धड़कन में न सही, हम कहीं दिल में तो तेरे रहेंगे, सेहरा में न सही, काँटों मे तो फूल खिलेंगे, किनारों में न सही, हम दरिया में तो तुमसे मिलेंगे , मत कहो अभी अलविदा ऐ दोस्तों, हम फिर मिलेंगे, हम फिर कहीं और मिलेंगे।
मेरी आदत बनने से पहले, तुम मेरी ज़रूरत थे, मुझसे बिछड़ने से पहले, तुम मेरी शोहरत थे, लुटा के तुमको मैं, बहोत गरीब हो गया हूँ, मेरी झोली में बस तुम हीं तो अकेले दौलत-ए-उलफ़त थे।
किसी त्योहार के बाद की उदासी हो तुम, और तुम उम्मीद भी हो अगले बरस के उस त्योहार की। तुम प्यारी हो कि जब मुझे तुम पे प्यार आता है , और तुम इंतज़ार भी हो मेरी- तुम्हारी जंग के बाद के प्यार की। यानि, तुम ज़िंदगी हो ज़िंदगी के साथ भी, और ज़िंदगी हो, ज़िंदगी के बाद भी।
हर एक घर के दीवार-ओ-दर पूजते हैं, कभी मज़ार तो कभी शाख़ो-शजर पूजते हैं, हमारा दिल नहीं है किसी के लिए पत्थर, सो हम पत्थर के चेहरे नज़र पूजते हैं, हमें नहीं सिखाया गया किसी पे पत्थर फेंकना, हम हिन्दू हैं इसलिए पत्थर पूजते हैं।
तुझको लिखना नहीं था लेकिन, क्या करूँ, ये सारे शब्द तुझ हीं से सीखें है। ये कुछ ऐसा है कि जैसे, द्रोणाचार्य पर चलाये एकलव्य के सारे बाण, द्रोणाचार्य सरीखे हैं।