अमरेश सिन्हा   (अमरेश सिन्हा)
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शायरी बेवजह नहीं है।
Joined 6 January 2019


शायरी बेवजह नहीं है।
Joined 6 January 2019

धड़कन में न सही,
हम कहीं दिल में तो तेरे रहेंगे,
सेहरा में न सही,
काँटों मे तो फूल खिलेंगे,
किनारों में न सही,
हम दरिया में तो तुमसे मिलेंगे ,
मत कहो अभी अलविदा ऐ दोस्तों,
हम फिर मिलेंगे,
हम फिर कहीं और मिलेंगे।

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तुझको बस इतना समझाना है
मिठास जीभ‌ से ज्यादा दिल‌ समझता है,
तू समझता है वो सब कुछ समझता है
वो समझता है तू उसको समझता है।

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ये न समझ के हम तुझको याद करते हैं,
मगर ये याद रखना ज़रूरी है कौन थे हम l

और भूलने पे आ जाए तो तुझको भी भूला देंगे,
मगर फिर याद करना मुश्किल होगा कौन थे हम l

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चलो भी, के सफ़र पूरा करना है,
सबक थोड़ा है, याद मग़र पूरा करना है,
काम बदन का साँसों से चल रहा है अभी,
मरने के बाद रूह का बसर पूरा करना है|

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मेरी आदत बनने से पहले,
तुम मेरी ज़रूरत थे,
मुझसे बिछड़ने से पहले,
तुम मेरी शोहरत थे,
लुटा के तुमको मैं,
बहोत गरीब हो गया हूँ,
मेरी झोली में बस तुम हीं तो अकेले
दौलत-ए-उलफ़त थे।

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दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है,
इस दर्द-ए-दिल की दवा क्या है...

-मिरज़ा ग़ालिब

दिल ढूँढता है वही रात वही दिन,
फिर ये जो गुज़रा वो बिता क्या है....

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किसी त्योहार के बाद की उदासी हो तुम,
और तुम उम्मीद भी हो अगले बरस के उस त्योहार की।
तुम प्यारी हो कि जब मुझे तुम पे प्यार आता है ,
और तुम इंतज़ार भी हो मेरी- तुम्हारी जंग के बाद के प्यार की।
यानि, तुम ज़िंदगी हो ज़िंदगी के साथ भी,
और ज़िंदगी हो, ज़िंदगी के बाद भी।

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वो मुझको समझाता रहा
के ज़िंदगी ये है, ज़िंदगी वो है,
मैंने कहा के तुम ये समझ लो,
के जो जी ली, वो ही ज़िंदगी है।

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हर एक घर के दीवार-ओ-दर पूजते हैं,
कभी मज़ार तो कभी शाख़ो-शजर पूजते हैं,
हमारा दिल नहीं है किसी के लिए पत्थर,
सो हम पत्थर के चेहरे नज़र पूजते हैं,
हमें नहीं सिखाया गया किसी पे पत्थर फेंकना,
हम हिन्दू हैं इसलिए पत्थर पूजते हैं।

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तुझको लिखना नहीं था लेकिन,
क्या करूँ,
ये सारे शब्द तुझ हीं से सीखें है।
ये कुछ ऐसा है कि जैसे,
द्रोणाचार्य पर चलाये
एकलव्य के सारे बाण,
द्रोणाचार्य सरीखे हैं।

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