आओ अब देवालयों से, हम ॐ उच्चारण करें, त्रिकाल जप कलिकाल में, हर दुःख निस्तारण करें, निज त्रिकाल दृष्टि को जगाकर, कलुषित कलिकाल का कल्मष हरें, हम ॐ उच्चारण करें, हम ॐ उच्चारण करें।।
लोकतन्त्र के अमोघ मन्त्र से, जिनको मिली करारी हार। षड्यंत्रों का सहारा लेकर, यहाँ वही मचाते हा-हाकार।। भ्रष्टाचार के असाध्य रोग पर, झट करना होगा गूढ़ विचार। इसका भी वैक्सीन बनाकर, अब करना है पुख़्ता उपचार।।
द्रोही रहे सदा क्यों हावी क्यों षड्यंत्री सदा प्रभावी, क्यों मानवता का सपना टूटा, क्यों हुआ सदा देवासुर संग्राम, अब भी नहीं किया जो चिन्तन, तो सोचो क्या होगा परिणाम।।
देश प्रेम के एक मन्त्र से विषधर सारे तिलमिला रहे हैं। और साँप संपोले जो बेचारे, बिल के बाहर बिलबिला रहे हैं।। सर्प विध्वंस यज्ञ करने को, अब जन्मेजय भी जाग चुका है। इन्द्रासन से जो छिपा था तक्षक, आहट सुनकर भाग चुका है।।
अलगाव वाद का अलाव अनवरत, देश में सुलग कर जलता है दिन रात। शत्रु पक्ष भी छल रहा, मजे से सेक रहा है हाथ। देश प्रेम ईमान धर्म को, वो समझेंगे कैसे ? जिनके लिये सर्वोपरि होते, जीवन में बस पैसे।