बहुत मासूम होती हैं लड़कियां
ख्वाब देखना
सपने संजोना
अपना हक समझती हैं
चांद, तारे, सूरज
सभी तो उनको अपने लगते हैं
बाग-बगीचे, नदी-नाले
और बहते पानी के झरने
उन जल की तरंगों में
पक्षियों की आवाज़ में
लहलहाते खेतों में
और मिट्टी की सोंधी खुशबू में
ढूंढती हैं वो केवल प्रेम
राग और अनुराग
और खो जाती हैं सपनों की नगरी में
बहुत मासूम होती हैं लड़कियां
~आमना-
Amna Azmi
(आमना)
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Joined 7 March 2025
9 MAR AT 4:29
7 MAR AT 22:28
कमरे के भीतर
कुछ बेड़ियां बिखरी पड़ी थी
रोशनदान से आती
चांद की रोशनी में
चमक रहे थे
बाहर की ओर जाते
कदमों के कुछ निशान
बाहर सहन में
चारपाई पर रखी थी
एक पगड़ी
और बस
यहीं तक थे
वो निशान
और ज़मीन पर
बिखरी पड़ी थीं
लाल छींटें
और एक पगड़ी
आख़िर
चौखट को लांघना आसान नहीं।
~आमना-
7 MAR AT 7:15
स्त्रियां 'चाक' पर मिट्टी सी घूमती हैं
और ढल जाती हैं हर रूप में
कभी घड़ा बन समेट लेती हैं
अपने भीतर
न जाने कितना दर्द।
तो कभी दिया बन
दूर करती हैं अंधियारा।
आग में तप कर
दृढ़ता का सोंधापन
घोलती हैं अपने भीतर।
और ये चाक रूपी
जीवन का पहिया
हर रोज़ मिट्टी सा गुंथवाता है
लेने को नया रूप, नया आकार...
~आमना-