बहुत कुछ समेटना है वक़्त कम है
पर क्या करे खुद बाजार में गिरवी हम है
ये दिन गुज़रते जा रहे ये शाम ढलती जा रही
ये ज़िन्दगानी क्यों कटती नही
क्यों अभी भी ठहरे यही हम है
एक कर्ज है जो उतरता नही ये शराब है जो चढ़ती नही
ये धुंआ न जाने मुझे कब निगलेगा
के मौत की राह तकते अब भी यही हम है
हर रोज़ एक जंग होती है बेबसी हरदम संग होती है
राहो में मंजिल के सिवा सब कुछ मिला
फिर मील के पत्थर से ठोकर खाये राहो में अधमरे पड़े हम है
अब कोई उम्मीद लिए नही बैठा हूँ
कोई चाहत ज़िंदा नही छोड़ी है
बस अब हलक से मेरे ये जान भी लेलो
के संग इसके बड़े बेगैरत से हम है-
I don't really talk much buts it's hard to keep myself quiet on... read more
मजबूरियां अक्सर दस्तक देती रहेंगी
हिम्मत खुद से वो कब तक बढ़ाये
चींखो ने भी अपना रास्ता बदल लिया
ये सावन आंसू अब कब तक छिपाये
संवेदनाओ से नही चलती है जिंदगी
किश्तों में हौसला कैसे जुटाए
दर्द तो छुपा लेंगे लिबास के भीतर
पर जो घाव अमिट है कैसे मिटाये
ख्वाबो के पर तो कतर दिए कब के
इन थकी हुई आंखों को कैसे सुलाए
इस दीपक को आस है थोड़े से तेल की
पर अंदर जो धधक है उसे कैसे बुझाये
मेरी अपनी व्यथा मेरी समझ के परे है
अब तुम्ही कहो तुम्हे कैसे समझाये ।।-
सो कर वापिस जगने में डर लगता है
मुझ पर ये ज़िन्दगी का असर लगता है
किसी नयी डगर पे कदम रखने में डर लगता है
कुछ गलत फलसफों का ये असर लगता है
ख्यालो में गूंजती है ये चींखें न जाने किसकी
किसी दम तोड़ती उम्मीद का ये असर लगता है
जब से उतारा है सर से अपने ख्वाबो का बोझ
बहुत ही भारी मुझको ये गुज़र बसर लगता है ।।-
दवा से दुआ से अब सबसे डरे है
मेरे जैसे लोग खुदाई से भी परे है
खुद तन्हाई से लबरेज़ है तब भी
हम जैसो से ही मयखाने भरे है
गुरबत भी अब हमारा क्या बिगाड़े
हम तो नंगे पैर और भूखे भी लड़े है
कभी नफरत सीखी नही फिर भी
हम न जाने क्यों मोहब्बत से परे है
चलते चलते ज़िन्दगानी हों चली है
फिर भी मंज़िल से कोसो खड़े है
जो भी चाह लिया है हमने जब
हर वक़्त बस उसी को तरस रहे है
चले थे कहीं ढूंढ ने जो खुद को
आज अपने ही साये से सहमे हुए है
।।-
मेरी राहो का कभी मंज़िल से कोई राब्ता नही रहा
मैंने देखे जो भी ख्वाब उनका हक़ीक़त से वास्ता नही रहा
मैंने तेरी तलाश में पिया है घाट घाट का पानी
फिर तिश्नगी में डूबा के और कोई रास्ता नही रहा ।।-
हम खुद ही में खो के रह जाएंगे
पता नही था इतना कुछ सह जाएंगे
खामोशी का दामन थामे सीखा चलना
पता नही था कि इतना कुछ कह जाएंगे
नदी के बीच चट्टान सा अड़े रहना
पता नही था कभी टूट के बह जाएंगे
हरदम सबसे आगे निकलने की होड़ में
पता नही था इस मोड़ पे अकेले रह जाएंगे
ख्वाबो की ये इमारत जो बना रखी है
पता नही था संग इसके ही ढह जाएंगे
हम खुद ही में खो के रह जाएंगे
पता नही था क्या से क्या हो जाएंगे-
अब कोई जंग नही लडूंगा ठान ली है
हाँ ये सच है अब मैंने हार मान ली है
मुझपे इतना भी अपना कर्ज न जताओ
तुम्हारे कहने से पहले ही मैंने बात जान ली है
मैं अब किसी हालत में नही के फिर कोई सौदा करू
तुम अपनी शर्ते न बताओ मैने सब मान ली है
महरूम हूँ आजकल अपनी सांसो से भी
शायद मेरी तकदीर हवाओ ने पहचान ली है
मैंने कर्मयोग से वीरक्ति अपनी अब जान ली है
हाँ ये सच है अब मैंने हार मान ली है-
शायद कभी कुछ सही नही होना है
मैं जो चाहता हूँ उसे नही होना है
तो फिर मेरा ये इंतेज़ार कैसा है
जब सब अज़ाब है तो क्यों रोना है
इतनी मेहनत और कशमकश क्यों पाले
जब मैं जो चाहता हूँ उसे नही होना है
राते कुर्बान कर दी ख्वाबों के लिए
अब ख्वाबो को कुर्बान कर के सोना है
अब सुबह उठने को मुझे नही सोना है
जब मैं जो चाहता हूँ उसे नही होना है
मैं राख हुआ हूँ कुछ होने में इस कदर
के अब बस मुझको राख होना है
मैं क्यों दामन थामु ज़िन्दगी का फिर
जब मैं जो चाहता हूँ उसे नही होना है-
चलो छोड़ो अब जाने दो रहने दो
मुझे तुममे परवाने सा जलने दो
इन होशियारों की बस्ती में
तुम मुझे पागल ही रहने दो
मेरी बातें अब सारी फ़िज़ूल होती है
मुझे उन्हें दीवारों से ही कहने दो
मुझे पूरा करने की कोशिश ही अब क्यों
मैं जितना बचा हूँ उतना ही रहने दो
कैद मुसाफिर सा हाल है मेरा अब
मुझे मेरे ख्यालो में ही बहने दो
मेरे बस्ते से बस निकाला ही है तुमने
मेरे ख्वाबो को अब मुझे उनमे भरने दो
मिला नही कभी चैन से जीने का मौका चीते
चली छोड़ो अब मुझे चैन से मरने दो-
जो अब तुम नही हो तो बस तुमको ही सोचता हूँ
आईने के सामने खड़े होकर खुद को खोजता हूँ
ये वक़्त न जाने क्यों ठहरा है उसी रोज़ पे
जिस रोज़ से मैं गिद्ध सा खुद को नोचता हूँ
बड़ा खुशनुमा सा है इस मौसम का मिजाज
चाय पे ये झूठ मैं खुद से रोज़ बोलता हूँ
दर्द से क्यों फिर राहत की गुंजाइश खोजता हूँ
जब खुद ही अपने पुराने जख्मो को मैं टटोलता हूँ
इस खालीपन का इलाज अब कहाँ ढूंढेगा चीते
सो इन दीवारों से अपने राज दिल के खोलता हूँ
होती जो तुम तो कहती के अपना ख्याल रखना
इन ख्यालो के जरिये ही हाल अपना तुमसे बोलता हूँ-