नहीं आना अगर ख़ुद तो कोई ख़त ही भिजवा दो
तेरे लफ़्ज़ भी आएँगे तो हमें राहत मिल जाएगी
तेरी यादों से सजी है हर एक तन्हा शाम मेरी
कोई झूठी ही सही मगर तसल्ली तो मिल जाएगी-
मैं बस दूर हुआ तुझसे पर जुदा तो नहीं हुआ
सच कहूं तेरे बाद किसी और का नहीं हुआ
ये सच है तुझ से मिले अब काफ़ी अरसा हुआ
पर तेरे सिवा किसी और से राब्ता भी न हुआ
सच कहती थी तुम की मैं सरफिरा सा आशिक
मैं कभी अच्छा भी न हुआ कभी बुरा भी न हुआ-
ख़ुदा को नाराज़ किया हर दफ़ा तुझे पाने के लिए
तेरा नाम ही काफ़ी है मेरे जाम को बनाने के लिए
तुम बर्फ़ सी "जान" जाम में गिरकर कही खो गईं
मैंने पी और बदनाम हो गया इस ज़माने के लिए
एक तेरा ही नशा है जो उतरा नहीं आज तक
वर्ना मयखाने तो रोज़ जाते है गम भुलाने के लिए-
नसीब ख़ुद लिखा हमने
शिकवा क्या करे अब खुदा से
कभी समुंदर से लड़े तो कभी
लहरों से उलझे इस जहाँ मे-
तुझे बाहों में भर तो लू पर कुछ सज़ा भी होगी
न रिहाई न आज़ादी थोड़ी सी ख़ता भी होगीं-
न कर पायेगा "चारासाज़ "इस दर्द-ए-दिल का इलाज़
जब तक वो ख़ुद हाथ न रखेगीं इस "दिल "के पास-
कभी चराग़ जला के देखा कभी दिल जला के देखा
रौशनी तो हुई पर इन आँखों ने उसे कहीं नहीं देखा-
उस गुल से वस्ल होए जो फसले बहार में
रहने दे हमको तेरी आग़ोश और तेरे प्यार में
तुझ से महकता ,निखरता हु दिन और रात में
रहते है जेब में मेरे ,तेरे दिए हुए फूल गुलाब के
मुमकिन नहीं की कोई तुझसा मुझे मिले हज़ार में
जैसे होता है सिर्फ़ एक बहिश्त का दाना "अनार" में
रख दू छुपा के तुझ को में कही इस संसार से
दिखता हैं जैसे "हेली" का तारा कुछ 76 साल में
करती हैं शौक शाम और सहर और हूर, मलक
हम को भी लिख दे खुदा तेरे खिदमत गुज़ार में
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