यादों की गिरफ्त में मुझे अच्छा लगता है,,,
मुझे रिहाई का मुचलका नहीं भरना है।।-
अपने कमजोर क्षण में किसी को मित्र नहीं बनाइए,,
अक्सर टूटा व्यक्ति जर्जर नाव में सवार हो जाता है।।-
खुशनसीब हूं किसी गैर से रिश्ता नहीं अपनापन का,,
मुझे दर्द दे सके अजनबी यह अधिकार नहीं दिया।।-
दुख बसता है मेरे अंदर,,
कहो खुशी तुम कब आई।
छम भरा अमावस का अंदर,,
नहीं दिखती अपनी परछाई।।
नहीं प्रतीक्षारत हूं मैं तेरी,,
आगंतुक सी तुम लगती हो।।
आती जाती पथिक की तरह,,
एक जगह नहीं ठहरती हो।।-
अविनाशी पीड़ा थी मुझसे,,
एकांत में जब मिलने आई।।।
अक्षुण्ण पीड़ा के सागर में,,
उर्मि बन क्रीड़ा करने आई।।
शांत जल में कल्लोल करती,,
विप्लव के भंवर बना देती थी।।
अचल साहिल के आश्रय को,,
पराभव का प्रतिशोध लेती थी।।-
बोला नाम कान में उनके,,
चेहरे पर कोई भाव न था।।
आवाज सुनकर सोए रहना,,
यह उनका स्वभाव न था।।
कितना बल और साहस था,,
निर्भय किसी से डर न था।।
शत्रु क्या बिगाड़ेगा हमारा,,
मन में तनिक भय न था।।।
हो गए हैं अब स्वच्छंद आंसू,,
पोंछने वाला हाथ नहीं था।।।
मिला हमको यह अभिशाप,,
शेष जीवन में साथ नहीं था।।।-