मन देहरी पर रुका हुआ है,
भोर सांझ सब बीती जाए
बात जुबां से कह ना पाऊँ,
नैन मेरे कोई पढ़ ना पाए
सर पर रखकर हाथ मेरे,
कोई ना बेटा मुझे बुलाए
लड़ बैठूँ अपनों से जब,
कोई ना मुझको तब समझाए
कितना शोर भरा जीवन में,
अब यह जीवन मुझे सताए
बहुत हुआ यह दुःख सुख खेला,
अधिक यह जीवन मुझे ना भाए ...-
भरी हुई भीड़ में कुछ करने का मुकाम चाहती हूँ मै... read more
झूठ सारे मोह भी, अब निक्वणित है भावना
ना चाह, ना ही आस है, अब मन जले जैसे चिता
सत्य सोच उर बैठे मेरा, तुम हो मेरी बस कल्पना
हैं ढूंढ़ती आँखे मेरी, स्नेह बस तेरा पिता...-
बिन बोले मेरे मन की, हर बात समझ जाते थे तुम।
देखकर उतरा चेहरा मेरा, कितना समझाते थे तुम।।
जीवन भर का ज्ञान हमें, तुम राहों में..
Continued in caption...
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माता-पिता कभी नहीं मरते...
सदैव जीवित रहते हैं
अपनी संतानों में...
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सजदे में जिसके, सर झुकाऊँ
तुम मेरी वो प्रार्थना हो।।
परे जीवन के, हर एक सत्य से,
अब तुम मेरी बस कल्पना हो।।
07-04-2021
5:17pm-
हूँ कितनी भी गुमसुम, तुम हंसाती मुझे हो,
कि जज़्बातों को मेरे, अब जताती तुम्हीं हो।
मुझमें साहस कहां था कि कह पाऊँ कुछ भी,
मन की बातें कलम से, लिखवाती तुम्हीं हो।
बनकर मेरी जबां, सब बोल जाती तुम्हीं हो।।
"कविता"
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रूठ जाए कोई तो मनाया करो,
रिश्तों को थोड़ा सजाया करो तुम।
जो बातें किसी की बुरी भी लगे ग़र,
मौन रह कर लड़ाई बराया करो तुम।
जो रिश्ते बनाना पसंद हो तुम्हें तो,
निभाने का ज़िम्मा भी उठाया करो तुम।
कोशिश करो मन दुःखे ना किसी का,
तकलीफ अपनी भी मन से निकाला करो तुम।
दिल दुःखे जो तुम्हारा, थोड़ा रो कर सही ही,
दिल को अपने भी थोड़ा संभाला करो तुम ।।
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व्यक्ति अकेला नहीं मरता
मरता है उसके साथ
एक नाम,
एक चेहरा,
एक पहचान,
और हज़ारो रिश्ते
शेष रहती हैं
तो बस
चंद यादें...-
समय की मार सहकर भी,
समय के साथ चल दे जो,
समय की तीव्र गति में भी,
समय सबको ही दे दे जो,
समय अनुकूल हो प्रतिकूल हो,
सभी स्वीकार जिसको हो,
वही परिपक्व है साथी,
समय अपना बना ले जो।।
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