ज़रा गौर फरमाइए
आप बात करते है कि
जातिवाद खत्म हो चला है,
मैं कहती हूँ, की अब भी है
ताउम्र रहेगा, बस हमें हमारा संविधान
एक मसीहा ने दे दिया है
जो इस भीड़ मे हमें कहीं खोने नही दे रहा
जिसकी बदौलत आज हमें अपनी बात कहने का अधिकार मिला है,स्वाभिमान मिला है,
होली दीवाली सुबह होते ही शुरू हो जाते थे यूँ तो बधाई संदेश
पर आज देखो कैसा वीराना सा पड़ा है,
कुछ को wahtsp के status लगाने मे ऐसा लगता है
आज के दिन
जैसे कहीं लगा दिया तो आज अपनी categeory से
दूसरी categoery में उनका नाम रजिस्टर हो जाएगा,और तो और गलती से अपने किसी mitra को reply में wish कर दिया तो आपके स्वाभिमान को ठेस पहुंच जाएगी,
आपको एक post करने में डर लगता है,, उस महान इंसान के लिए जिसने हमें ज़ीने का हक़ दिया
बस दुर्भाग्यपूर्ण उस इंसान को इस समाज ने एक जाति विशेष तक ही सीमित कर दिया,
जबकि कार्य पूरी मानव जाति के उत्थान में किए थे
बस एक चीज़ बदली है,
हमे सर उठा के जीने की आज़ादी,
जो आप न होते तो कभी नही मिलती।
जय भीम, बाबा साहिब अमर रहे
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दिल मे एक बात आज
रह रह के सता रही है,
क्यूँ अपने ही ,आपकी ज़िंदगी को
जहन्नुम बनाने मे, कोई कसर नही छोड़ रहे है,
जबकि इस काम के लिए तो दुश्मन ही काफ़ी थे।
क्यूं नही होती हज़म किसी को
एक औरत की अकेले रहने पर खुशी
क्यूँ ये बर्दास्त नही कर पा रहे है
की कैसे कोई अपने में खुश रह सकता है
बिना किसी का सहारा लिये,
जो बात पुरूषों को अच्छी नही लगती
वो किसी औरत को कैसे अच्छी लग सकती है।
बस इसी सोच में ,हरवक़्त ये डूबे रहते है,
नही हूँ मैं कमज़ोर इतनी की ,सहारा ढूंढू किसी का
फिर क्यूं मुझे तोड़ने की कोशिश सबने कर रखी है
मैंने जो किया वो मेरे साथ, तुम अपना देखो
एक ही ज़िंदगी है, क्यों उसे सजा बनाते हो
ज़ियो ओर ज़ीने दो।क्यूँ नही अपनाते हो।
जब तुमसे कुछ लेने की चाह नही,
तो दर्द देने का तुम्हे कोई हक़ नही।
तुम अपने रास्ते चलो,
मुझे मेरी मंज़िल तक पहुंचाने का कष्ट न करो,
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सदियों से जो चला आ रहा है भेद
बेटे और बेटी में,
वो कभी कम न हो सकेगा शायद।
माँ बाप बस बेटे के मोह मैं
हर बात को उसकी
सही ही मानते है।
बेटी चाहे कुछ भी कर ले।
क्यूं उसके लिए मोह में
कमी रह जाती है,
क्यू बेटी के हिस्से में
माँ बाप से ज़िद करना नही आता है
क्यूं बेटी के हिस्से में ही
सारी मर्यादा आती है।
क्यूं-
उलझने जब किसी की
गर बढ़ाने लगे, आपका प्यार,
तो चुपचाप दूरी बना लेने मे ही
आपकी समझदारी है,
-
किसी की यादों में ,यूं उलझी हुई थी ज़िन्दगी
की तुमने दर्द पर मरहम भी लगायी
तो बस वो हमें, दर्द का मज़ाक ही लगी-
मोहताज़ नही है मेरी खुशियाँ ,,
किसी भी बहाने की
मैं हर दिन कुछ नया कर
खुद के लिए ही खुश होती हूं।।-
अधूरापन तो ज़िन्दगी का एक कड़वा सच है,
जिसे चाय के बहाने बस कुछ देर के लिए
मीठा कर लेते है लोग,
वरना ये भी इश्क़ के जैसी ही है
तलबगार बना के खूब चुस्कियां लेती है,
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बात अब अच्छे और बुरे की, रही ही नही
दरमियां अब इतने" फासले" जो घर कर चले है
-
देख आकर कभी,हमे
बहुत बदल गए है हम
पहले रोते थे ,तेरे कांधे पर सर रखकर
अभी तो सूख गए है आँसू भी,
ये जानकर ख़ुद ही।।
कोई है नहीं ,जो समझेगा इनका मोल
छलकते हुए,,,-
ज़िन्दगी से तो एक अरसा हुआ, तू चला ही गया था,
पर इस कमबख्त दिल को, यक़ीन न आया था कभी,
अब जब टूटा है, दिल का ये भ्रम,
समझ नही पा रहें, कैसे समेटे ख़ुद को,
दिल के टुकड़े जो बिखर गए है कई,,-