नजर अक्सर शिकायत आज कल करती है दर्पण से , थकन भी चुटकिया लेने लगी हैँ तन से और मन से ! कहाँ तक हम संभाले उम्र का हर रोज गिरता घर , तुम अपनी याद का मलवा हटाओ दिल के आंगन से ..!!
प्यास दिल की बुझाने वो कभी आया भी नहीं, कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं। बेरुखी इससे बड़ी और भला क्या होगी, एक मुद्दत से हमें उसने सताया भी नही..!!
दो अश्क मेरी याद में बहा जाते तो क्या जाता, चन्द कलियां लाश पे बिछा जाते तो क्या जाता । आये हो मेरी मय्यत पर सनम नक़ाब ओढ़ कर तुम, अगर ये चांद का टुकडा दिखा जाते तो क्या जाता ।