" कैसी दिखती थी
पहाड़-सी ठंडी और संयमित
कितने हल्के स्पर्श से
भरभरा कर बिखर जाती थी."-
"मेरे गांव में ज्यादा लोग नहीं आते
शाम से ही इसके प्रवेश द्वार पर
एक मूंगफली वाला खड़ा रहता है
खोमचे पर ढिबरी जलाए हुए
रुक-रुक कर किसी दिशा से
एक साइकिल आती है
और ढिबरी की लौ
थोड़ी मुलायम होकर झूम जाती है
पूरा गांव उचक कर देखता है
जैसे वृद्धाश्रम में आया हो लिफ़ाफ़ा
और वैसे ही निराश हो जाते हैं
सब एक साथ
सब वैसे ही फ़िर दुआर ताकने लगते हैं
ढिबरी फ़िर तन कर खड़ी हो जाती है
थोड़ी देर बाद फ़िर आती है
कोई जानी पहचानी साइकिल
और गाँव में फ़िर से कोई आया नहीं होता."-
"मैं अपने ऐबों के लिए उत्तरदायी नहीं हूं
इनके लिए दोषी हैं वे स्त्रियाँ
जिन्होंने मुझे बार-बार बुरा कहा
और फ़िर अरअराकर चूम लिया."-
"मोटी बूंद वाली वृष्टि की तरह
उलहनाएँ पड़ती हैं मुझ पर
अनपेक्षित
मैं जड़ें पकड़े झूलता रहता हूँ
और जब लगता है
कि उजड़ जायेगा सब
जाने किस मद में दुबारा झूम जाता हूँ
मैं कांटे नहीं उगाऊंगा
और मरूँगा भी नहीं
उग आऊंगा सब गढ़-मठ पर
तुम्हारी उपेक्षा मेरे लिए खाद है."-
"बगिया में धप्प से एक आम टपका
और मुंह तोप कर
चोरी से देखता रहा इधर-उधर
उसके बाबा कहते थे
बाहर मत जाना
चंठ बच्चे झपट्टा मारते हैं
पर कोई नहीं आया
शाम-अंधेरे चूहा घसीट ले गया
बाबा ये भी कहते थे
जमाना बहुत बदल गया है
बाग में टपके आम पर
बच्चे नहीं झपटे
काल का एक और चक्र पूरा हुआ."-
"गहरे दबा
एक बीज चटखा
कितना चुप
कितना विस्फोटक
कितने नर्म उच्छ्वासों से
हवा में भर गया जीवन."-
"वहाँ इतना अँधेरा था
कि हाथ को हाथ नहीं सूझता था
किसी का भी हाथ!
अँधेरे में हाथ खोजना
एक बचकानी क्रिया है
अँधेरे में आग खोजना चाहिए
थोड़ी-सी ही मिले
बहुत भीतर ही मिले
पर आग की तरफ़ बढ़ना चाहिए
आग लेकर बढ़ना चाहिए
हाथ की तरफ़."-
"हमारे हाथ
आपस में गुंथे हुए थे
उस रस्सी की तरह
जिसके सहारे नदी में उतरा आदमी
भय से विमुक्त होकर
लगा लेता है डुबकियां."-
"मैं कपास के बीज की तरह
अपनी जड़ों से छूटा
और पहाड़ जंगल नदी फांदता हुआ
अवांछित विज्ञापन की तरह
शहर की एक चौहद्दी पर जा टंका हूँ
अब मुझे भय होता है
शरीर झाड़ कर खड़ा होने में
थोड़ी देर सुस्ता लेने में
या रेशा भर उग आने में भी
यहाँ सूख ही नहीं पाता
मेरी भयाक्रांत गंवई देह का पसीना
तिस पर इस शहर की नाक तेज़ है
इस शहर को बहुत भूख लगती है
ये शहर विस्थापितों को निगल जाता है."-
"कैसे कह सकते हो तुम
कि वो शहर तुम्हारा है
वो प्रेमिका है तुम्हारी
अगर घुप्प अंधेरी रातों में
उसके मादक मोड़ नहीं देखे
पसीने से तर सुबहों में भी
तुमने उसे लिपटकर नहीं चूमा
अगर हवा में बह आयी गन्ध से
तुम नहीं जान पाते
कि अभी, बिल्कुल अभी
पास में कहीं मर गयी है
शहर की सबसे दुलारी चिड़िया...
कैसे कह सकते हो तुम!"-