तूझे पा लेना कभी किस्मतों का रौब था...
तू आज इक भूली सी ख़्वाहिश लगती है...!!!-
दिल की गहराई में अब कुछ नपे तुले से एहसास रहते हैं _
जज़्बाती थोड़ा कम हो गया हूं !
बस कुछ सलीके, कुछ लहजे और कुछ सीखे सबक पास रहते हैं...
वक्त़ से सीखा है_
वक्त़ की बात है_
वक्त़ की जमीं पर_ वक्त़ का ही साथ है...
थोड़ी सी खामियां_ और थोड़ी सी ख़ामोशी लिए_
अब उस कमरे में लम्हें कुछ ख़ास रहते हैं...
दिल की गहराई में अब कुछ नपे तुले से एहसास रहते हैं ...!!!-
ज़ख़्म मेरे मुझसे अब हिसाब मांगते हैं...
चेहरे पर ज़ाहिर लकीरों के ज़वाब मांगते हैं...
ना हम तन्हा थे_ ना तन्हा मेरी आदत ही रही_
मज़लिशें भी मेरी थीं और _ मेरी ही मशियत(will/wish) रही_
अदब केह दें_ ख़ामोशी को_ जुबां ऐसे कुछ नक़ाब मांगते हैं...
ज़ख़्म मेरे मुझसे अब हिसाब मांगते हैं...!!!-
जिंदगी से जी लेने की थोड़ी शिकाय़त कर लें...
कुछ देर तो बैठे साथ_ ऐसा कोई बन्दोबस्त कर लें...
मानता हूं घर छोटा है मेरा_
जगह कम सही_ मगर दिल होता है मेरा_
के! तुझसे तेरी ही तबिय़त की कैफियत कर ले_
कुछ देर तो बैठे साथ_ ऐसा कोई बन्दोबस्त कर लें...!!!-
काश कहीं वो मंज़र होता_
तेरे पैरों से तकिये पर मेरा सर होता_
इक सुकूं इक तिरे ख़्वाब की ख़्वाहिश होती_
इक चांद इक आसमां और बस मेरा हमसफ़र होता_
काश कहीं वो मंज़र होता...
काश कहीं वो मंज़र होता...!!!-
उस अद़ने से पल की शुरुआत २००४ में हुई _
और जाने कितने अनगिनत खट्टे-मीठे पलों को जोड़ते हुए वो अद़ना सा पल इक सुनहरे भविष्य में बदल गया __
२० सालों का ये सफ़र इक पड़ाव तक पहुंच तो गया है मगर....
मंजिलें अभी और भी हैं....!!! Happy 20th Anniversary 💞-
कुछ कह ना पाए तो इक सवाल आता है...
कह कर कुछ_ ग़र चुप हो जाए तो सवाल आता है...
दूरियां कभी और भी अच्छी सी लगने लगें _
जब नजदीकियों में_ पोशीदा! इक मलाल आता है...!!!-
जज़्बात अपने कैसे बताऊं_
ज़ख़्म हैं मगर_ किसे दिखाऊं_
जिम्मेदारियों से कभी कहा-सुनी हो भी जाए तो क्या...
उन्हें छोड़_ फिर और किससे निभाऊं...!!!-
वही...
आज फिर बूंदों से प्यास मिटाने की कोशिश_
कुछ तो भर गया_
और कुछ ❤️ भरा भी नहीं...!!!-
हुज़ूर इस क़दर भी ना इतरा के चलिए_
खुले आम नज़रें ना लहराते चलिए_
हुज़ूर इस क़दर भी ना इतरा के चलिए_
खुले आम नज़रें ना लहराते चलिए_!
कोई मनचली गर मिला लेगी आंखें_
ज़रा सोचिए फिर क्या कीजिएगा...
इशारों में बड़कर जो क़रीब आ जाए_
तो क्या नज़रों को अपने झुका लीजिएगा...
हुज़ूर इस क़दर भी ना इतरा के चलिए_
खुले आम नज़रें ना लहराते चलिए_!!
बड़े मनचले हैं कुछ तेरी अदाएं_
यूं पलकों को अपने ना इतराया कीजे...
लड़खड़ा जाती हैं दिलों की भी धड़कन_
तबस्सुम को अपने ना बिखराया कीजे...
हुज़ूर इस क़दर भी ना इतरा के चलिए_
खुले आम नज़रें ना लहराते चलिए_!!!
बहोत कातिलाना है तेरी हर बात लेकिन_
अगर एहसास भी होतें तो क्या बात होती...
लिखे जाते फिर मुकद्दस से लम्हें_
लहज़ों में जाने कितनी जज़्बात होती...
हुज़ूर इस क़दर भी ना इतरा के चलिए_
खुले आम नज़रें ना लहराते चलिए_!!!!-