यूं रात से इश्क लड़ाना वाजिब नही रे 'मीत'
रात की कहानी अक्सर डरावनी होती है ।-
ये जिंदगी जो मुझे कर्जदार करती रही,
कहीं अकेले में मिल जाए तो हिसाब करूँ।
- राहत इंदौरी
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प्राइवेट जॉब मे छुट्टी लेकर घर जाना उतना ही मुश्किल है,
जितना पुरानी फिल्मों में गवाह का कोर्ट तक पहुँचना।
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#CP-
डरी-सहमी चुपचाप सर झुकाये
'Salary' चली जा रही थी,
सामने-
EMI, Credit Card Bill, House Rent और अन्य खर्चे
नाम के गुंडे सीटी बजा रहे थे,
'Salary' ने हाथ जोड़े विनती की, लेकिन उन्होंने एक ना सुनी
और अखिरकार 'Salary' लुट गई।-
बात थी कल ही मिलने की, कल से आज कर बैठ,
जब सामना हुआ उनसे तो शर्म–ए–लिहाज़ कर बैठे।-
क्या करोगे अमीर बन कर इश्क में,
सरेआम लूट लिए जाओगे
पता भी नहीं चलेगा।-
घमंड ना कर ’मीत’ तू किसी भी बात पर
जिंदगी में एक रात ऐसी भी आयेगी,
जिसके बाद कोई सुबह नहीं होगी-
जरूरतमंदों की मदद में लग जाओ,
खबर पक्की है, दौलत साथ नहीं जायेगी।-
हर ख़ुशी थी लोंगों के दामन में
पर एक हंसी के लिये वक़्त नहीं था,
दिन रात दौड़ती दुनिया में
ज़िन्दगी के लिये ही वक़्त था।
अपनों की भी कद्र नहीं थी
बातों का भी वक्त नहीं था,
रिश्तों को तो हम मार चुके थे
और दफ़नाने का भी वक़्त नहीं था,
सारे नाम मोबाइल में थे
पर दोस्ती के लिये वक़्त नहीं था,
गैरों की क्या बात करें जी
जब अपनों के लिये ही वक़्त नहीं था।
आखों में थी नींद भरी
पर सोने का वक़्त नहीं था,
दिल जब भी था ग़मो में डूबा
पर रोने का भी वक़्त नहीं था।
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
की थकने का भी वक़्त नहीं था,
पराये एहसानों की क्या कद्र करते
जब सपनों के लिये ही वक़्त नहीं था।
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी हमें
हमने अब तक क्या पाया था,
आज घर में रहने को मजबूर है
कभी घर में रुकने का भी वक्त नहीं था।-