Amit Sahu   (अमितAvवैराग्य)
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Joined 1 October 2017


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11 AUG 2024 AT 23:01

सोते सोते आधी रातों में
नींद मेरी खुल जाती है।
ये हंसती हुई तस्वीर तेरी
कितना मुझे रुलाती है।।

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6 JUN 2024 AT 0:59

मैं बुरा हूं वैराग्य तो बुरा ही रहने दो
बनावटी बातों से जुदा ही रहने दो
किसी की मर्ज़ी पर मैं क्यों बदलूं
तुम्हें ऊपरी अदब अच्छी लगती है
इससे बेहतर मुझे बेअदब ही रहने दो

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6 APR 2024 AT 0:29

याद आएंगे हम भी ज़रा सब्र कर
फूल मुरझाने भी दो मेरी कब्र पर
तेरे खातिर मैं प्यासा रहा उम्र भर
बूंद बाक़ी है मेरी कुछ अभी अब्र पर

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6 APR 2024 AT 0:22

कोई तन्हा नहीं दुनियां में
एक मेरे सिवा।
उड़ रही रही है मेरी ज़िंदगी
जैसे कोई धुंआ।।

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27 NOV 2023 AT 20:16

यूंही भटकते रहे।
हम आफताब के आगे
जुगनू सा चमकते रहे
मैंने बाज़ार में ईमान नहीं बेचा
बस इसी गुनाह के लिए
हर बार शूली पे लटकते रहे।।

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27 NOV 2023 AT 20:02

चलो इस ख़्वाब को हकीकत कर दें।
हम अपने हाथों से मांग तेरी भर दें।।
तू ख़ुशी से मुझसे लिपट जाए
और मुस्कुरा के हम ज़िंदगी 
नाम तेरे कर दें।।

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13 OCT 2023 AT 20:07

किसी की बददुआ इस कदर लगी मुझे
कि हर गली धुआं - धुआं लगी मुझे...

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24 AUG 2023 AT 20:29

अपनी मर्ज़ी से कहां
जी पाते हैं लोग।
राह चलते भी कहीं
खो जाते हैं लोग।।
किसी और से बेहतर है
ख़ुद को गुनहगार कहो।
सच बोलने पर अक्सर ही
बिगड़ जाते हैं लोग।।

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13 AUG 2023 AT 14:29

ना आसमां बोलेगा...
ना ज़मी बोलेगी...
किसी पे क्या गुजरी
आंखों की नमी बोलेगी
मैं भले ही ख़ामोश रहूं
इन होठों से...
मेरी आंखों से उसकी
फिर भी कमी बोलेगी।।

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14 JUN 2023 AT 0:05

सांसे हमारी जरा बढ़ने वाली है।
दिल की पटरी से उसकी
यादों की ट्रेन गुजरने वाली है।

मैं कहीं बेहोश ना हो जाऊं
उसके हुस्न की बिजली
मुझपे गिरने वाली है

इक कयामत को कयामत का भला डर क्या
वो तो बस अपनी परछाईं से मिलने वाली है

आज मैं अपनी आंखों से
अपनी ही मईय्यत देखूंगा
उसकी डोली जो मेरे घर के
सामने से गुजरने वाली है

बस इक उम्मीद ने तो ज़िंदा रखा है
वरना तो समझो ज़िंदगी बिछड़ने वाली है।।

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