सोते सोते आधी रातों में
नींद मेरी खुल जाती है।
ये हंसती हुई तस्वीर तेरी
कितना मुझे रुलाती है।।-
DOB 10 August
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मैं बुरा हूं वैराग्य तो बुरा ही रहने दो
बनावटी बातों से जुदा ही रहने दो
किसी की मर्ज़ी पर मैं क्यों बदलूं
तुम्हें ऊपरी अदब अच्छी लगती है
इससे बेहतर मुझे बेअदब ही रहने दो-
याद आएंगे हम भी ज़रा सब्र कर
फूल मुरझाने भी दो मेरी कब्र पर
तेरे खातिर मैं प्यासा रहा उम्र भर
बूंद बाक़ी है मेरी कुछ अभी अब्र पर-
कोई तन्हा नहीं दुनियां में
एक मेरे सिवा।
उड़ रही रही है मेरी ज़िंदगी
जैसे कोई धुंआ।।
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यूंही भटकते रहे।
हम आफताब के आगे
जुगनू सा चमकते रहे
मैंने बाज़ार में ईमान नहीं बेचा
बस इसी गुनाह के लिए
हर बार शूली पे लटकते रहे।।-
चलो इस ख़्वाब को हकीकत कर दें।
हम अपने हाथों से मांग तेरी भर दें।।
तू ख़ुशी से मुझसे लिपट जाए
और मुस्कुरा के हम ज़िंदगी
नाम तेरे कर दें।।-
अपनी मर्ज़ी से कहां
जी पाते हैं लोग।
राह चलते भी कहीं
खो जाते हैं लोग।।
किसी और से बेहतर है
ख़ुद को गुनहगार कहो।
सच बोलने पर अक्सर ही
बिगड़ जाते हैं लोग।।-
ना आसमां बोलेगा...
ना ज़मी बोलेगी...
किसी पे क्या गुजरी
आंखों की नमी बोलेगी
मैं भले ही ख़ामोश रहूं
इन होठों से...
मेरी आंखों से उसकी
फिर भी कमी बोलेगी।।-
सांसे हमारी जरा बढ़ने वाली है।
दिल की पटरी से उसकी
यादों की ट्रेन गुजरने वाली है।
मैं कहीं बेहोश ना हो जाऊं
उसके हुस्न की बिजली
मुझपे गिरने वाली है
इक कयामत को कयामत का भला डर क्या
वो तो बस अपनी परछाईं से मिलने वाली है
आज मैं अपनी आंखों से
अपनी ही मईय्यत देखूंगा
उसकी डोली जो मेरे घर के
सामने से गुजरने वाली है
बस इक उम्मीद ने तो ज़िंदा रखा है
वरना तो समझो ज़िंदगी बिछड़ने वाली है।।-