उजड़ी हुई माँग
फिर भरेंगे “सिंदूर” से
आतंकी मिलेंगे
आज 72 हूर से-
पाक की नापाक धरा जिसने
सिर्फ आतंकवाद ही बोया है
28 बेगुनाहों का क़त्लेआम,
कश्मीर फिर सिसक सिसक कर रोया है ।
धर्म के नाम पर खून बहाने वाले
आतंकियों, सुन लो —
अब मातम नहीं, रण होगा
रण अब भीषण होगा।
दिल्ली की गद्दी से सिर्फ़
इतनी सी फ़रियाद है ।
जिसने मारा जैसे मारा , वैसे ही सज़ा देना
हर निर्दोष की मौत के बदले
दस आतंकि मरवा देना ।
आतंकवादी सारे अब
जहन्नुम का स्वाद चखे।
जवाब एस देना कि,
इनकी सात पुश्ते याद रखे।
-अमित
#JusticeForKashmir #PahalgamMassacre #EndTerrorism
-
दीवाली की दोपहरी में,
मिट्टी की दीवारें पर तेरे चूने से सने हाथ
और घर का सारा काम फिर १२ ब्लाउज सी कर दिवाली के पकवान बनाना
आज सिर्फ़ सोच कर सिहर जाता हूँ मैं
तेरी सिलाई मशीन गुनगुनाती थी,तो घर मुस्कुराता था
मैं बटन लगाता एक रुपया तुझ से लेकर इतराता था
काश की उन धागों में उलझकर
कभी तेरे आँचल से लिपट जाता।
शायद थोड़ा और समय मुझे तेरे साथ मिल जाता ।
तेरी गोदी में सोना,
जैसे कोई छोटा-सा आकाश मिल गया हो,
जहाँ तारे नहीं… तेरी साँसें टिमटिमाती थीं।
तू बिन बोले समझ जाती थी,
मैं कभी ज़ोर से नहीं रोता था,
बस आँखों में डबडबाता था—
तू हथेली से पोछ लेती थी,
जैसे आँसू नहीं… बचपन गिर पड़ा हो ज़मीं पर मेरा ।
वो आख़िरी शाम
तेरे होंठ काँपे थे कुछ कहने को,
मैं कुछ सुन न पाया माँ लगा की
तू फिर से साथ रहेगी मेरे
पर वो स्पर्श,
अब भी हथेलियों में काँपता है।
सिर्फ़ तेरी याद का सन्नाटा है जो
हर रोज़ दस्तख़ देता है
हर रोज़….
-अमित
-
चंद दिनो से कोलकाता झुलस रहा जिस आग में
सब आवाजे दबी हुई है मानो किस राग में
पर कब तक बर्बरता का ये नग्न तमाशा देखोगे
कब तक जलती लाशों पर यूं अपनी आंखे सेकोगे
क्या कुर्सी के खातिर तुम , यूं नग्न अस्मिता देखोगे
या उत्पीड़ित शक्ति को यूं घूट- घूट कर मरता देखोगे
शक्ति का जिसने संहार किया उनको उत्तर देना होगा
जीते जी मारा जिन्होंने ,उन सब को भी मरना होगा
लोगो की जान बचाने वाली को बस एक बार फिर जी ला देना
शील मातृ का तोड़ा जिसने वो अहंकार नहीं टिकने देना ।
इनको सीधा फांसी टांगे , वो मातृ शक्ति की परिचायक
या सीना पर गोली मारे ,कोई भी सेना नायक
जिस दिन ये घटना घटेगी, उस दिन आग बुझेगी ये
अंदर निरंतर ज्वाला ही वरना दुगनी और जलेगी ये ।
अमित राठौर-
यूं किसी "आफताब" (सूर्य) की
चाह में न खत्म करना
तू अपना वजूद, चाहे
हर मोड़ पर तुझे घने अंधेरे मिले ।
मेरे आंगन की श्रृद्धा
जिंदगी भर घर रह जाए
पर ऐसे कोई बेटी
फ्रिज में ना मिले ।।-
ये जो बरस रहा है ना, बादलों से ,
आज, गुरूर है मेरा
तेरे हिस्से की कसक बाकी रह गईं
हो तो तो आजमा लेना ज़रा
जिस दिन ने चाहूंगा छोडूंगा
तेरा आशियां ये हुनर है मेरा
-
साहिल पर बैठ कर यूं
हम उसमे कुछ पत्थर फेंका करते है ।
पत्थर डूब जाते है
मोहब्बत तैर जाती है।।-
एक जमी हुई सी ठण्ड है, इस मौसम में
कम्बख्त यादो की ठिठुरन,
अहसासों की कंपकपी, और
जलाने के लिए पुराने सफ़हे भी नहीं बचे,
जिन पर अक्सर यादो की गर्मी हुआ करती थी,
हमसाया जो था ,पिछले मौसम की धुंध में
खो गया है कंही......
और एक ये बरसात है जो
कुछ दिनों से अड़ी हे इस ज़िद पर कि
पहले वो थमे या ये आंसू,
ठिठुर गया है , दून शहर (जहन) ,
तेरी इस फ़िज़ा से।।-
ये असर दुवाओं का , तुम्हे याद जब आएगा ।
गीले तकियो पर जब ये दिल बिखर जायेगा ।।
यूं बेखुदी में जब खुद में खो जाओगे ।
बर्बाद तमन्ना के हर दुख से मर जाओगे
तब असर इनायत का जब तुम्हे वापस लायेगा।।
द्रवित हुए मन को फिर कठोर बनाएगा ।।-
एक इंतजार है जो खत्म नहीं होता ।
और एक तुम्हारी याद है हर लम्हा बेधड़क सी चली आती है ।।
एक खुशी है जाने की जो दबी सी बैठी है
तुमसे बिछड़ने के लिए ।
एक रास्ता जो नया है , पर ये याद खत्म नहीं होती ।
एक इंतजार है जो तुम्हारा खत्म नहीं होता ।-