Amit Raj   (राज)
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Joined 17 September 2018


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15 FEB 2021 AT 23:40

कुछ बातें हुई पूरी तो कुछ अधूरी ही रही
तू जीने के लिए थी जरुरी, जरुरी ही रही
मैं कतरा कतरा कर खुद को मिटाता रहा
तेरी कसमें मज़बूरी थी , मज़बूरी ही रही


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20 JAN 2021 AT 21:53

तनहा रहा इतना की साथ क्या है? सबब ना रहा
जो साथी मिला भी कोई तो उसका अदब न रहा
फूल से रिश्तों को पंखुड़ियों में बिखेरा ऐसे 'राज'
समेटना बहुत चाहा मगर फिर वो गजब ना रहा




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19 JAN 2021 AT 21:55

क्या बताऊँ राज वक्त का कैसा फेर है .............
गैरों को तवज्जो देता रहा अब अपने ही गैर हैं ...
सांसो की गुलामी है ये जिंदगी कुछ और नहीं.....
मोह नहीं जिंदगी से मगर जिन्दा हूँ बात और है ..

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15 JAN 2021 AT 20:40

तुझे पाया तो तेरी कदर कर न सका
तुझे खोया तो तेरे बगैर रह ना सका
तेरे बगैर जीने का दिल नहीं करता
मगर बिन तेरे तनहा मैं मर ना सका
तू तो आयी खुदा की रहमत बनकर
दिल में अपने पाक मोहब्बत लेकर
मैं ही फिसला गुरुर में की संभल न सका
तेरे इश्क़ की बराबरी मैं कर ना सका
मांगता हूँ खुदा नवाजे मौका एक दफा
कर लूँ सब सही जो सही कर ना सका

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7 JAN 2021 AT 16:02

शिकवा भी नहीं ज़माने से शिकायत भी नहीं
मैं तनहा ही ठीक हूँ , भीड़ की चाहत भी नहीं
ऐ मेरे अज़ीज़ मेरे दर्द को मेरे पास ही रहने दो
तुमसे न संभलेगा तुम्हे इसकी आदत भी नहीं


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19 OCT 2020 AT 22:42

मैं लिखता हूँ अक्सर तन्हाई में ll

दिन के उजालों से छुप के
रात की गहराई में ,
ख़ामोशी की बातें छपती फिर
कोरे पन्नो की श्याही में ,
मैं लिखता हूँ अक्सर तन्हाई में ll

तूफानों से सहमा नन्हा पौधा
जब झूमता है पुरवाई में ,
दिन में तपती धरती
जब मुस्काती रात की शीतलायी में ,
मैं लिखता हूँ अक्सर तन्हाई में ll

तनहा राहों में मिलता एक साथी
जब अपनी ही परछांई में ,
जब मायूसी थक के सो जाती सिरहाने
तब नयी उम्मीदों की अंगड़ाई में ,
मैं लिखता हूँ अक्सर तन्हाई में ll

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22 JUN 2020 AT 9:01

तू कोमल पुष्प सरीखी
मैं हूं कठोर पत्थर सा
तू मंजिल सहज सुलभ सी
मैं कोई राह दुस्कर सा
तू सावन की शीतल फुहार
मैं तपती जेठ दोपहर सा
तू पुरवाई के ठंडे झोंके सी
मैं हूं तूफान भयंकर सा
तू है अमृत कलश सरीखी
मैं विष लिपटा अधर सा
है अपना मिलन कठिन प्रिये,
तू इक पूर्ण प्रेमकाव्य सरीखी
मैं प्राणी निपट निरक्षर सा

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2 APR 2020 AT 15:53

पिता का मान रखने को घर बार जिसने त्याग दिया
पत्नी की लाज रखने को समुन्दर जिसने बाँध दिया
धरती का बोझ हरने को रावण को जिसने मार दिया
अपने चरणों की धूली से अहिल्या जिसने तार दिया
राज धर्म समाजवाद का सर्वोत्तम जिसने ज्ञान दिया
उस धर्मधीर रघुवर का मर्यादा पुरुषोत्तम नाम हुआ



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25 JAN 2020 AT 14:48

बिन तेरे ये कहानी हाँ अब तक रही
ये आँख बिन पानी हाँ अब तक रही
देख तुझको ये अरमान मचलने लगे
इश्क़ बिन जवानी हाँ अब तक रही


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20 JAN 2020 AT 0:27

तेरे संग छोटा तो तेरे बगैर बड़ा सा लगता है
बिन तेरे दिन भी उखड़ा उखड़ा सा लगता है

तू सावन की फुहार बसंत बहार सा लगता है
बिन तेरे बाग़ भी उजड़ा उजड़ा सा लगता है

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