कान्हा तुम्हारे बगैर सब
व्यर्थ है मेरा...
मैं शब्द तुम्हारा और
तुम अर्थ हो मेरा...-
बारिश की बूंदों में पैगाम हमारा होगा।।
तुझको छूनेवाली हर बूंद में एहसास हमारा होगा।
गलियारा तुम्हारा, गलियारें की मिट्टी तुम्हारा होगा।।
पर उन मिट्टी से निकला खुशबू हमारा होगा।
अब कुछ इस कदर तू हमारा होगा।।-
वो खफा है हमसे, शर्मिंदा हम भी है।।
झूठ का सहारा लिया था हमने,
आज अकेले भी हम ही है।
बताना था सारी बातें उसे, चाह कर बता ना सके।।
दुखी कर दिया हमने उसे,
सज़ा के हकदार भी हम ही है।
अब सोचता हू, बता दिया होता तो अच्छा रहता।।
कम से कम वो हमारे पास तो होती,
हमने ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली,
अब रोने का क्या फायदा, इसकी वज़ह भी हम ही है।
हर तरफ से बंद है उस तक के रास्ते, माफ़ी भी मांगू कहा से मांगू।।
एक खत लिखा है उसके नाम की, अब इस चिट्ठी को उस तक कैसे भेजू।-
थोड़ा थक सा जाती है तू,
रिस्तो की बोझ में,
इसलिए खुद से मिलना छोड़ दिया है।
कई मर्तबा परेशान रहती है तू,
बस, जताना छोड़ दिया है।।
तू कर सकती है कुछ बड़ा,
तेरी रूह को भी इसका इंतजार है।
थोड़ा थक सा गई है तू,
पर ऐसा नही है कि तूने चलना ही छोड़ दिया है।।
ये जंग है खुद को खुद से मिलाने की,
इस जमाने को तुझे पीछे छोड़ दिखाना है।
चलना है तुझे इन्ही कठिनाई भरी राहो पे,
अपने वजूद का परिचय तुझे सबसे करना है।।
डर, क्रोध और आलस
इनकी क्या औकात है।
तू चल...
तेरा परिवार भी तेरे साथ है।।-
मैं नारी हूँ, मैं स्त्री हूँ।।
मैं घर की खुशियाँ, मैं ही अन्नपूर्णा हूँ।
अग्नि परीक्षा को पार करने वाली, त्रिजटा की बेटी हूँ।।
मैं ही हूँ स्वावलंबन बनने की शिक्षा देने वाली, माँ सीता हूँ।
मैं प्रेम का आधार हूँ, मैं ही प्रेम की परिभाषा।।
मैं ही हूँ प्रेम की देवी, श्री राधा।
रुद्र सा प्रकोप हैं मेरा, काल का भी संघार हूँ।।
पापियों को उनकी औकात दिखाने वाली, मैं ही माँ काली हूँ।
ज्ञान के इस भंडार में, मैं सहयोग कारी हूँ।।
विद्या का पाठ पढ़ाने वाली, मैं ही माँ सरस्वती हूँ।
लड़ जाऊं ईश्वर से मैं, यमराज को नमन कर आऊं।।
सूर्य सा तेज़ है मेरा, मैं ही हूँ देवी सती, माता अनसूया।
भारत हैं सिर का ताज़ मेरा, मैं ही भारत की शान हूँ।।
भारत पे आँच न आने दू, मैं ही हूँ देश देवी, भारत माता।
मैं नारी हूँ, मैं स्त्री हूँ।।
मैं घर की खुशियाँ, मैं ही अन्नपूर्णा हूँ।-
तू हुस्न की क्या बात करता है।।
मैंने यादो का ख़ुमार करते देखा है।
उन हर रातो में रूह को खुद से लड़ते देखा है।
मोहब्बत में "दिल-ए-इज़हार" तो सब करते है।।
मैंने मोहब्बत में खुदको कई मर्तबा रोते देखा है।
मेरे जज्बातों की यू धज्जियाँ ना उड़ाया कर ज़ालिम।।
मैंने बाजारों में तेरा रंग बदलते देखा है।-
मोहब्बत-ए-चाँद
क्या बताऊँ क्यो आज दिल फिर मुस्कुराया है।।
मोहब्बत का चाँद आज जमीं पर उतर आया है।
यू तो वो मुझे अपने पास भी नही आने देती,
लेकिन आज उसने मुझे घर पर बुलाया है।
लड़ते-झगड़ते उसने मुझे अपना मोहब्बत-ए-चाँद बताया है।।
बातों बातों में उसने मेरा झूठा सेवई भी खाया है।
आज तो मेरे दुश्मनों ने भी मुझे गले से लगाया है,
शायद आज फिर ईद का चाँद नज़र आया है।
इंसानों में भी आज प्यार उमड़ कर आया है,
इसलिए मैंने इस दिन को मोहब्बत-ए-चाँद बताया है।-
बस गयी ये कैसी मेहक।।
इत्र भी लगाऊ तेरी मेहक आये।
छोड़ कर चली गयी कुछ इस कदर।।
आईने में चेहरा भी देखु बस तू ही नज़र आये।
तुझको पाने की होड़ में दर दर भटकता रहा।।
फिर जाके तेरी तस्वीरों को गले लगाया।
जर्रे जर्रे में तेरी ही याद थी।।
उन सबको जलाके....मैंने मौत को गले लगाया।-
लोगों से बैर कहाँ तक तुम पालोगे
नफ़रत की आड़ में तुम खुद को ही जला पाओगे
साम दाम दंड भेद ये तो सिर्फ नफ़रत का एक दरिया है
हटा दो अपनी आँखों से इनकी पट्टी तो सब बढ़िया है।
दुसरो की ख़ुशी में खुश रहना
ख़ुशी का यही एक जरिया है
वरना धन दौलत सिर्फ खुशियो का एक नज़रिया है
समझ पाओ तो समझ जाना
जीवन में मोक्ष पाने का यही एक रहिया है
ना समझ पाये तो याद करना इस अमित पांडेय को
क्योंकि तुम्हे समझाने का मेरा यही एक जरिया है।-
तुम कितना जलाओगे दिल्ली,
तुम कहा तक भाग पाओगें,
अपने बाप से पुछलो इतिहास हमारा
और सोचो...
क्या तुम हमसे जिन्दा बच पाओगें?-