वह मुझे अपना दोस्त मानती वक्त बीता
और मैं उसे अपनी प्रेमिका उसके बाद पता नहीं क्या हुआ
मुझे उसकी आँखें बहुत पसंद थीं कोशिश की, मगर
एक बार उसने पूछा - उन स्वप्निल आँखों में फिर
'सबसे काला क्या?' मैं गुम नहीं हो पाया
मैं बोला - निकल पड़ा मैं
'सबसे काली हैं तुम्हारी आँखें' इक नयी जोड़ी
मैं अक्सर आँखों की तलाश में
उन आँखों के अंधेरों में
गुम हो जाता कल उसकी लिखी
धीरे धीरे मैंने एक किताब देखी
उन आँखों में कुछ शीर्षक था -
जुगनुओं को छोड़ा 'सबसे काला क्या? सपने!'
उन्हें रंगीन
सपनों से अलंकृत किया
कुछ ही दिनों में
उन आँखों में प्रेम चमकने लगा
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