Amit Kumar Singh   (Amit Kumar Singh)
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Joined 15 January 2020


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Joined 15 January 2020
1 DEC 2021 AT 9:23


जाने क्या खोया है हमने, जाने क्या है पाया
देखो, दिसंबर का महीना आज फिर है आया



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12 OCT 2021 AT 16:10

लाशें कहाँ बोल पाती हैं

(कविता)

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1 OCT 2021 AT 21:41

मेरे कमरे का वो ख़ाली कोना 

🌹🌹🌹🌹🌹

उस रोज़ मैंने देखा
मेरे कमरे का वो ख़ाली कोना 
कितना ज़्यादा ख़ाली था

(कविता का अंश)

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25 AUG 2021 AT 10:20

दो प्रेमियों की हथेलियों के बीच ही तो ये जहां है
बाकि तो सिर्फ दरिया है, ज़मीं है और आसमां है



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13 AUG 2021 AT 23:17

वह मुझे अपना दोस्त मानती वक्त बीता
और मैं उसे अपनी प्रेमिका उसके बाद पता नहीं क्या हुआ
मुझे उसकी आँखें बहुत पसंद थीं कोशिश की, मगर
एक बार उसने पूछा - उन स्वप्निल आँखों में फिर
'सबसे काला क्या?' मैं गुम नहीं हो पाया
मैं बोला - निकल पड़ा मैं
'सबसे काली हैं तुम्हारी आँखें' इक नयी जोड़ी
मैं अक्सर आँखों की तलाश में
उन आँखों के अंधेरों में
गुम हो जाता कल उसकी लिखी
धीरे धीरे मैंने एक किताब देखी
उन आँखों में कुछ शीर्षक था -
जुगनुओं को छोड़ा 'सबसे काला क्या? सपने!'
उन्हें रंगीन
सपनों से अलंकृत किया
कुछ ही दिनों में
उन आँखों में प्रेम चमकने लगा

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29 MAR 2021 AT 20:28

ख़ज़ाने भर रखे धनक ने जो
उस से वो सारे रंग उधार लूँ
मोहिनी चाल, तेरी हँसी पे मैं
संचित वो रंग सारे फुहार दूँ

नभ में बिजलियाँ कड़क रहीं
उन्हें तेरी छुवन का दुलार दूँ
मलूँ गुलाब गुलाबी गालों पर
अबीर को महक बेशुमार दूँ

नमी बसी जो है आज अब्र में
उसे तेरी साँसों में उतार दूँ
गुब्बारे में सुबह की ओस भर
तू कहे गुलाल संग उछाल दूँ

पिचकारी भरूँ मैं प्रेम की
मिला सपने उसमें हज़ार दूँ
एक दूजे में घुलें रंग सा
ऐसे संग ज़िन्दगी गुज़ार दूँ FB/Insta: BoltiKavitayein

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29 MAR 2021 AT 16:37

जोगीरा सारा रा रा...

शुभ होली

रंग मुबारक


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10 MAR 2021 AT 0:23

सास के वचन को उठाये खड़ी थी
वो आँखों को नीचे झुकाये खड़ी थी
पल्लू को सिर पर पकड़ रखा था
एक औरत ने औरत को जकड़ रखा था

(पूरी रचना अनुशीर्षक / कैप्शन में)

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27 FEB 2021 AT 16:48

रिश्ता जो उनसे था कभी, वो अब रहा नहीं
अब कैसे कह दूँ उन्हें सब, जो तब कहा नहीं


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26 FEB 2021 AT 21:03

गिरहें थीं सौ-सौ दरम्यान हमारे
काश, सब के सब मैं खोल देता
कितना कुछ था बोल देने को
काश, सब के सब मैं बोल देता


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